कुछ दिन पूर्व नैनीताल में घूम रही थी, मई जून वहाँ पर टूरिस्ट सीज़न होता है। सभी प्रान्तों के सैलानी घूमते दिख जाते है शाम के वक्त नैना देवी मंदिर, तिब्बती बाज़ार और ताल के किनारे माल रोड पर लोग एक दूसरे को धकियाते चलतें हैं।
रोपवे जाना, बोटिंग करना, तिब्बती बाज़ार में खरीददारी करना, ताल के किनारे टहलना, मोमो, चाट-पकोड़ी, गर्म चाय, भुट्टा, मौसमी फल आदि खाते-पीते और ठंडी हवाओं का आनंद लेते रहो। वर्षों बीत गये, बचपन से नैनीताल में यही सब देख कर रही हूँ , कहीं कोई बदलाव नही। इतना मशहूर टूरिस्ट प्लेस है फिर भी उत्तराखंड सरकार ने पता नहीं इसके सौन्दर्यीकरण के लिए अब तक क्या किया।
दुसरे दिन बहुत सुबह अपनी खिड़की से ताल की खूबसूरती को देख रही थी| हो चुकी बारिश की वजह से हल्की धुंध थीl ताल के किनारे पम्प हॉउस के पास कुछ हलचल दिखी। कुछ लोग ताल में उतरे हुए से दिखे | सोचा सैलानियों के लिए कोई स्विमिंग क्लब बन गया होगाl उत्त्सुकता वश नीचे पहुँच जाती हूँ, और माहौल का जायजा लेती हूँ। भीड़ में खड़े कुछ नवयुवकों से बात करके बेहद आनंद आया।
कुछ वर्ष पूर्व बनी नासा एक स्विमिंग एसोसिएसन है जो इन नेशनल लेवल तक खेले हुए लोगों के स्वयं के प्रयास से बनाई गई है। बहरहाल सरकार उनकी मदद के लिए तो कुछ नहीं कर सकीं हाँ थोड़ा रोड़ा अटकाने का उनका प्रयास जारी रहता था। ऐसा उनका कहना है। वहाँ पर उसी पर मीटिंग भी हो रही थी।
उन्ही में से एक जोशीले नेशनल लेवल तक खेले हुए नवयुवक ने बताया की- "यहाँ पर बच्चे और बड़े सभी सीखते हैंl पूरी देख-रेख के अन्दरl हमारे सबसे अधिक उम्र के कोच देखिये वो रहे ७५ वर्ष के जो देखने में सिर्फ ५५-६० के आस -पास के लग रहे थे | हम ही मेम्बेर्स इस ताल के इर्द-गिर्द सफाई का भी ध्यान रखते हैंl सैलानियों द्वारा फैलाया कबाड़ इकठ्ठा करवाते है और उसे बेच कर महिने में एक बकरा पार्टी का आयोजन हो जाता है " हँसते हुए बताता है l
"हमेशा तो कबाड़ फ़ैलाने के लिए सैलानी नहीं होते ना तो उस महिने तो बकरे की अम्मा खैर मनाती होगी ?" मज़ाक में पूछ लेती हूँ।
"हम तो खुद उस दिन का इंतज़ार कर रहें हैं, इतना मशहूर टूरिस्ट प्लेस है साफ़ रहेगा तो हमारा ही नाम होगा, मगर ऐसा होता नही पार्टी हो ही जाती है " थोड़ा मायूस होकर कहता है |
"सरकार को तो तुम्हारी मदद करनी चाहिए। टूरिस्म प्रमोट होगा तो उन्हें भी तो फायदा है ?"
"इसी बात का तो रोना है ना खुद करतें हैं ना हमें करने देते हैं| कुछ दिन पहले किसी आफिसर ने शिकायत कर दी थी, कि बच्चों के डूबने का खतरा है, तब से बंद हो रखा है, अभी हमने स्टे ले लिया है, कोई मदद को आगे नहीं आता " थोड़ा परेशान होकर कहता है |
"यदि आज तुमने यहाँ पर नहीं सीखा होता तो नेशनल कैसे खेलते ?"
"मैम हमारी तो छोडिये, तैरने का जुनून था हम सबको| पहले आस-पास सीखते रहे जब लेंथ और विड्थ करने का समय आया तो यहीं आये| तब यहाँ पर बोटिंग पुलिस वालों की निगरानी में होती थी| हम कुछ दोस्त मिलकर एक बोट किराये पर ले लेते थे और बीच ताल में जाकर उसे पलट देते थे फिर वहाँ से खूब प्रैक्टिस कर के ही किनारे पर लौटते थे " हँसते हुए पूरे जोश से बताता है |
अगर जोश और ज़ज्बा हो तो कामयाबी ख़ुद ब ख़ुद रास्ता देती है। कुछ पंक्तियाँ उन नवयुवकों के जुनून और उत्साह को समर्पित करती हूँ l
"हमने कागज़ की कश्तियाँ नहीं पलटीं हैं
मुकद्दर के सिकंदर है
ज़िंदगी की बाजियां पलटते हैं "