Monday, May 7, 2012

गुजरे हुए लम्हों जरा ठहरों

कैसे भूल जाऊं 
वर्षों पहले मेरा हाथ थामे 
तुम चले थे दूर तक उस अंतहीन सड़क पर 
आज भी मेरी हथेलियों में उस शाम की खुश्बू बसी हुई है 
कैसे भूल जाऊं 
वो रंगीन सपने जो देखे थे कभी 
तारों की छावं में पूनम की चांदनी रात में 
 बेवजह ही होंठ गुनगुनाने लगते थे खुशियों के गीत 
कैसे भूल जाऊं 
जब आँखों में घिर आती थी नमी 
और खोखली लगने लगती थी भीगी मुस्काने 
तब आसमान में टूटता तारा देख दुआ में उठते थे हाथ 
गुजरे हुए लम्हों 
 झट से थाम लेतीं हूँ हाथ तुम्हारा 
जब कभी मन होता है कुछ दूर साथ चलने का 
तुम्हारी हर याद में आज भी मोगरे का वो ईत्र महकता है