कैसे भूल जाऊं
वर्षों पहले मेरा हाथ थामे
तुम चले थे दूर तक उस अंतहीन सड़क पर
आज भी मेरी हथेलियों में उस शाम की खुश्बू बसी हुई है
कैसे भूल जाऊं
वो रंगीन सपने जो देखे थे कभी
तारों की छावं में पूनम की चांदनी रात में
बेवजह ही होंठ गुनगुनाने लगते थे खुशियों के गीत
कैसे भूल जाऊं
जब आँखों में घिर आती थी नमी
और खोखली लगने लगती थी भीगी मुस्काने
तब आसमान में टूटता तारा देख दुआ में उठते थे हाथ
गुजरे हुए लम्हों
झट से थाम लेतीं हूँ हाथ तुम्हारा
जब कभी मन होता है कुछ दूर साथ चलने का
तुम्हारी हर याद में आज भी मोगरे का वो ईत्र महकता है