इन ऊंची चढ़ती इमारतों में
ऊंची उड़ान और ऊंचे सपने बोने
इस शहर की भीड़ में खोने
क्यों आये थे उस दिन
अब याद नहीं आता
बचपन की खिलखिलाहटें जवानी की आहटें
झूले, पेड़ और प्यारा सा अंगना
वार त्यौहार और सजना संवरना
छुपाते बताते किस्से कहना
कुछ भी तो याद नहीं आता
नदियाँ पहाड़ फूलों की बहार
धूप की तपिश बारिश की फुहार
बर्फ की चादर से सिहरता संसार
बसंत में खिलता महकता वो प्यार
वो भी याद नहीं आता
अब तो कुछ भी याद नहीं आता
फिर ये टीस कैसी ये संजीदगी कैसी