Wednesday, May 16, 2012

अब तो कुछ भी याद नहीं आता



इन ऊंची चढ़ती इमारतों में 
ऊंची उड़ान और ऊंचे सपने बोने 
इस शहर की भीड़ में खोने 
क्यों आये थे उस दिन 
अब याद नहीं आता

बचपन की खिलखिलाहटें जवानी की आहटें 
झूले, पेड़ और प्यारा सा अंगना 
वार त्यौहार और सजना संवरना 
छुपाते बताते किस्से कहना 
कुछ भी तो याद नहीं आता

नदियाँ पहाड़ फूलों की बहार 
धूप की तपिश बारिश की फुहार 
बर्फ की चादर से सिहरता संसार 
बसंत में खिलता महकता वो प्यार 
वो भी याद नहीं आता 

अब तो कुछ भी याद नहीं आता
फिर ये टीस कैसी ये संजीदगी कैसी