Wednesday, May 2, 2012

वीरान सौन्दर्य भीमबेटका का, Bhopal ( Bhimbetka rock shelters, Madhya Pradesh)

फुर्सत और उत्त्सुकता भी कमाल की चीज है, कहाँ से कहाँ पहुंचा देती है। सोचती हूँ यदि आदिमानव घुम्मकड़ नहीं होता तो ये सब जगहें भी कमसकम इस हाल में नहीं होती, दूसरा दिन भोपाल में स्थित भीमबेटका के लिए तय था। सुबह से ही गर्माते हुए सूरज से बचने के सारे साधन एकत्रित करके निकलते हैं। वैसे बीच-बीच में अचानक बादल भी मेहरबान हो जाते थे।  

भोपाल शहर से  भीमबेटका की दूरी करीब ४५ किमी है। यहाँ की शिलाएं और गुफाएं पाषाण युग ( stone age ) को दर्शाते हैं। काले स्लेट पत्थरों और बलुआ मिट्टी से बनी चट्टानें बहुत कुछ गोलाई लिए हुए भी हैं, इसलिए वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं की कभी ये सब पानी के अन्दर रहा होगा। 

मुख्य शहर से दूर होते ही हरियाली पीछे छूटती गई और सामने आता गया खामोशी का ताना-बाना लपेटे हुए संवेदनशील करता वीराना। पक्की सड़क के दोनों तरफ पतझड़ देख चुके ठूंठ से साल और टीक के पेड़ अपनी खो चुकी हरीतिमा की अलग ही कहानी दर्शा रहे थे। 

इन पेड़ों और चट्टानों में अपनी ही काल्पनिक आकृतियों को देखते हम प्रसन्न हो रहे थे। कछुवे की आक्रति वाली चट्टान कमाल की थी। 

 नीचे चारों तरफ साल और टीक  के सूखे पत्ते बिखरे हुए थे। इन पत्तों पर चलने से इनकी चरमराहट मुझे बहुत ही कर्णप्रिय लगती है। ( love the word rustling ) अन्दर कहीं ढेर सारी रोमानियत भर देतें है। मन गीत सा गुनगुनाने लगता है। वीराने भी सौन्दर्य बोध करा सकते हैं, ऐसा सोच पाना जरा मुश्किल लगता है, मूक परन्तु मन व आत्मा से जुड़ाव महसूस करा देता है। 

वहीं पर बड़ी लम्बी मूछों वाला एक बीस साल बाद वाले स्टायल से लगभग अपने डंडे पर लटकते हुए वर्दी वाला भी खड़ा था। बिना कुछ पूछे ही सही जानकारियाँ देता रहा। मेहनताने  का सच्चा हक़दार। 

इन चट्टानों पर उस युग के जन जीवन की झांकियां अंकित हैं। जानवर, शेर, भालू, चीता, हाथी, हिरण आदि......कहीं कहीं पर आखेट का दृश्य, कहीं नृत्य करते हुए लोग और कहीं पर चिड़ियाँ आदि, मुख्यतः ये चट्टानें बलुआ पत्थर से बनी हुई हैं। 

 जीवन की विविधता को समझते देखते हम बहुत देर तक एक शिला पर बैठे रहते है। जरुर यहाँ पर भीम को भी आपार शांति और सुकून मिला होगा तभी उसने अपने बैठने के लिए इस जगह को चुना होगा। 
लौटते हुए अधूरा बना हुआ जैन मंदिर देखते हैं, जहाँ पर ६ मीटर लम्बी शांतिनाथ की मूर्ती रखी हुई है, यहीं पर मशहूर देशी घी के बाफले,चूरमा लड्डू जैसा कुछ स्वादिष्ट खाते हैं और आगे बढ़ते हैं भोजेश्वर मंदिर की तरफ। 

यह मंदिर भोपाल से करीब ३० किमी की दूरी पर बेतवा नदी से लगा हुआ है, परमार वंश के राजा भोज के नाम पर इसका नाम भोजपुर रखा गया, राजा भोज एक लेखक भी थे जिन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थीं, अब अज्ञात कारणों से अधूरे रह गये इस मंदिर में पहुँच जाते हैं। 

जूते थोड़ा दूर ही उतार देने थे। तपते हुए पत्थरों पर लगभग जल चुके पैरों के तलवे तकलीफ देने लगे, तभी सामने भव्य, विराट, विशाल, १८ फीट लम्बा, ७.५ फीट चौड़ा एक ही पत्थर से निर्मित आलीशान शिवलिंग देख कर मन अति आनंदित हो गया। भाव-विभोर !

 ये दुनिया का सब से बड़ा शिवलिंग है। राजा भोज की महानता का गुणगान करता सा साक्षात् शिव रूप में प्रतिष्ठित। यदि ये मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हो जाता तो इस मंदिर का स्वरूप क्या होता समझ सकते हैं। 
अब वापस भोपाल शहर के बड़े तालाब या भोजताल को देखने जाते हैं। यह एक तरफ वन विहार से लगा हुआ है, और दूसरी तरफ ताल की खूबसूरती है, ये एशिया का सबसे बड़ा अप्राकृतिक ताल है जो  लगभग ६.० किमी तक फैला हुआ है 

सैलानियों को आकर्षित करने के लिए इसमें बहुत से पानी के खेल भी खेले जाते हैं, बहुत सी रंगीन नौकाएं और कुछ सफ़ेद बतखें भी तैरती दिखीं जो ताल की शोभा को दुगुना कर रही थी। 

 ये ताल केवल वर्षा के पानी पर निर्भर करता है,  इसका कोई अन्य जल स्रोत नहीं है। बड़ा ताल और छोटा ताल एक पुल के द्वारा अलग होता है। पिछले वर्ष इसके बीच में राजा भोज की बहुत बड़ी एक मूर्ती भी लगा दी गई है, जिससे इसका सौन्दर्य अब और भी अधिक निखर गया है। सैलानियों का जमाव गर्मी के बावजूद भी सभी जगह मिल जाता है। 

शाम को यहाँ पर लोगों का मेला सा लग जाता है। इसलिए मैं इसे शाम होने से पहले ही देख लेती हूँ। पूरे इत्मीनान से, भरपूर, पानी किसी भी रूप में हो आँखों को हमेशा सुकून ही देता है। 

राहुल सांकृत्यायन के घुमक्कड़ शास्त्र को सार्थक करती, यात्रायें कुछ वक्त से ठहरी हुई ज़िंदगी को गतिशील बना देती है और ज़िंदगी के रंगमंच को बड़ा कर देती हैं, बहुत कुछ सिखा देती है, जिससे हम अपने किरदार को पूरे न्याय के साथ निभा सकें........


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...