Saturday, April 28, 2012

Mesmerizing Sanchi, Bhopal ( Madhya Pradesh )

 
कहते हैं दो व्यक्तियों की यात्रा एक जैसी नहीं होती। सबकी अपनी सोच, नजरिया, मकसद और अनुभव होता है। भोपाल घूम के आ रही हूँ। अब मेरी नज़र से। 

भोपाल में ही कार्यरत एक आफिसर मित्र से परिचय हुआ। उनके सुन्दर साथ और ज्ञानवर्धक चर्चाओं से सफ़र बेहद शानदार साबित हुआ। मुझ जैसे एकल चलने वालों के लिए यह साथ कमाल का रहा। ऐसी जगहों पर भीड़ -भाड़ से हट कर शांती से समझते, देखते जाने का ही आनंद है। हमें अपने कुकून से बाहर निकलने के बाद ही मालूम पड़ता है कि दुनिया बेहद अच्छे लोगों से मिलकर बनी है और बेइंतहा खूबसूरत है। हमने पहले दिन साँची जाने का मन बनाया था। साँची भोपाल शहर से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। 

बचपन से सिर्फ किताबों में सांची के बारे में देखा और पढ़ा था। अब जब सामने विशाल, भव्य स्तूप देखे तो कुछ देर स्तब्ध रह गई। स्तूप -१  तो इतना शानदार और उर्जावान था कि अभिभूत करता बदन में सिहरन भर देता है। 

चारों तरफ दूर-दूर तक हरियाली, पेड़ और फूलों की छटा बिखरी हुई थी। इतनी गर्मी में भी वहां पर पानी के छिड़काव की पूरी व्यवस्था थी। शिलाओं, स्तंभों और द्वारों पर कमाल की नक्काशी अंकित थी। वहां पर शैलभंजिका की खूबसूरती, बुद्ध के कई जीवन दृश्य, ध्यानमग्न बुद्ध,  रानी माया, उनके पुत्र आदि कई तरह की मूर्तियाँ थीं। 


उस वक्त के कारीगरों द्वारा इतना बारीक काम किया गया है कि  देखते ही बनता है। बहुत से सैलानी भी आश्चर्य चकित होते हर छोटी-बड़ी आकृति के बारे में जानने को उत्सुक दिख रहे थे । 

अशोक के स्तंभ जिन पर उस वक्त के श्लोक रूपी सन्देश लिखे हैं, उसका नीचे का भाग भी वहाँ पर रखा हुआ है। उसके ऊपर का चार शेर वाला हिस्सा अब संग्रहालय में स्थित है। विशाल स्तंभ, अपनी कहानी खुद कहता हुआ, विराट। कैसे इस भारी भरकम आकृति को स्तंभ के ऊपर रखा होगा सोच कर आश्चर्य होता है। 




इन स्तूपों को देखने से पहले वहीं पास में बना पुरातत्व संग्रहालय देख लेना चाहिए जिससे इन स्तूपों और आकृतियों को थोड़ा और गहराई से समझा जा सकता है। बहुत सा घूमने पर और देखने पर भी जब दिल तृप्त नहीं हुआ तो वहीं पास की एक बेंच पर बैठ गई और फिर जी भरकर सब कुछ देखती, समझती और निहारती रही। 


कैसा रहा होगा वह समय और कैसे वे कारीगर और इस अदभुत शिल्प को गढ़ने वाले शिल्पकार? उन सभी के लिए भीतर बहुत सा आदर भाव रखते हुए अब आगे विदिशा की उदयगिरी गुफाएं देखने के लिए चलते हैं। ये सांची से 13 किमी की दूरी पर स्थित है। 

शुरू की गुफा के बाहर ही विष्णु के बराह अवतार बने हैं और गुफा के भीतर शिवलिंग। उस समय का शिल्प, मूर्तियाँ, मनोभाव आदि देखने योग्य है। एक बहुत बड़े लेटे हुए विष्णु भी हैं। पता नहीं क्या दर्शाते हैं। मनभावन, अतिश्योक्ति रहित रहस्यमई गुफाएं। 

कितना अलग सा दृश्य था उदयगिरी पहाड़ियों का, प्रकृति की लीला अपरम्पार। सड़क के एक तरफ ये बड़ी-बड़ी काली बलुआ मिट्टी और स्लेट से बनी गुफाएं, मंदिर और पहाड़ियां हैं और सड़क के दूसरी तरफ सपाट धरती, मकान,खेत और पेड़। 

गुफा 19 थोड़ा हट कर बनी थी। कहते हैं ये भारत में एकमात्र स्थान है जहाँ पर शिव रूप में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है। ये पंचतत्व का भी द्योतक है। इसकी छत पर विशेष तरह की बड़े से फूल जैसी कारीगरी की हुई है। ओउम के उच्चारण पर कुछ देर तक वह ध्वनि गोलाकार घूमती हुई सी प्रतीत होती है, अद्भुत प्रतिध्वनि थी। 

कर्क रेखा देखकर तो मैं अति रोमांचित हो गई थी। उस पर खड़े होकर ऐसा लगा मानो मैं सारी पृथ्वी के बीचों बीच खड़ी हूँ और सारा संसार गोल-गोल मेरे चारों तरफ घूम रहा हो। 

अब हम यहाँ से वापसी करते हैं भोपाल शहर की तरफ। अच्छी पक्की सड़क हो, किशोर कुमार के रोमानियत से भरे गीत हों। जीवन आनंदमय हो उठता है। इस तरह चारों तरफ के दृश्यों को देखते हुए चलते रहना। इससे भी जीवन को एक नया आयाम और नजरिया मिल जाता है। 

शाम को भारत भवन जाते हैं। 1918 में चार्ल्‍स कोरेया द्वारा इसका निर्माण किया गया था। यहाँ पर आज भी पारंपरिक फोक आर्ट को संरक्षित किया गया है। यहाँ पर कई नाटकों का मंचन भी होते रहते हैं। 

यहीं पर एक संग्रहालय और लाइब्रेरी भी है। सब कुछ कलात्मक, रंगीन और जीवन से भरपूर। 

हमनें भोपाल के बाज़ार में भी कुछ वक्त गुज़ारा। मित्रों के लिए वहाँ की कशीदाकारी किये हुए कुछ उपहार लिए। सच्चाई , इमानदारी और विनम्रता वहां के लोगों के चेहरों पर लिखी थी। जैसे यह वहाँ की सभ्यता हो। अब रात के खाने पर कुछ अन्य मित्रों से मिलना तय था। जानने के लिए कि कल किस तरह और कहाँ से दिन की शुरुआत की जायेगी। 


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