बहुत वक्त हुआ
अब तो तुमसे बिछुड़े हुए
वो दिन आज भी याद है मुझे
जब तुमने मिटा दिया था वो आखिरी रास्ता
मुझ तक पहुँचने का
अब बस एक झरोखा रह गया
जहाँ से भूले भटके कुछ शब्द लेकर
कभी आ जाती है धूप की एक बारीक किरण
मैं भी रख देती हूँ
वहीं पर अपनी यादों का प्रिज्म
वो रोशनी की छुअन तब बदल जाती है
विवर्तित होकर आलोकित सतरंगी छटा में
और कर देती है उस दिन के मौसम को खुशनुमा