निष्ठुर चाँद
अब शिकायत करने लगा है
दिल भी नहीं बहलाता मेरा
मेरे लाख मनाने पर फिर नज़र फेर लेता है
उदास रात
सोने का बहाना कर
चली आती है घर मेरे
आवारा चाँद फिर झांकता है खिड़की से मेरी
बहुत ही
मायूसी से कहता है
अब पीठ तो ना फेरो
मुझे भी तो सहलाना था तुम्हें अपनी चांदनी से
और तुम
छुप गये थे अपने ही पहलू में
मैं खड़ा रहा यहाँ बांहें फैलाये
शिकायत करता मुझे चैन से जीने भी तो नहीं देता
निष्ठुर चाँद