Saturday, April 14, 2012

चाँद को भी शिकायत है मुझसे


निष्ठुर चाँद 
अब शिकायत करने लगा है 
दिल भी नहीं बहलाता मेरा 
मेरे लाख मनाने पर फिर नज़र फेर लेता है 
उदास रात 
सोने का बहाना कर 
चली आती है घर मेरे 
आवारा चाँद फिर झांकता है खिड़की से मेरी 
बहुत ही 
मायूसी से कहता है 
अब पीठ तो ना फेरो
मुझे भी तो सहलाना था तुम्हें अपनी चांदनी से  
और तुम 
 छुप गये थे अपने ही पहलू में 
मैं खड़ा रहा यहाँ बांहें फैलाये 
शिकायत करता मुझे चैन से जीने भी तो नहीं देता 
निष्ठुर चाँद