मुझे मेरी ही खामोशियाँ
अब नीरस लगने लगी हैं
मांगती हैं मुझसे ही
मेरे होने का प्रमाण
मेरे होने का प्रमाण
थमा देती हूँ तब उनके हाथों में
वे सभी नज्में जो लिखी थी तब
वे सभी नज्में जो लिखी थी तब
जब मेरे सपनों को लगे थे पंख
उड़ान भरते पहुँच जाते थे हिमशिखरों पर
बर्फीली हवाओं से जमे हुए ज़ज्बात
खिल उठते थे मोगरा के फूल से
चीड़ की खुश्बू लिए मादक हवाएं
कोसी नदी की संगीतमय छलछलाहटें
सब मिलकर सजा देते थे उन भावों को
जिन्हें शब्दों में कैद करना
मेरे बस में नहीं था
मेरे बस में नहीं था
तब देवदार के तले बैठ कर सोचती
वो सहर जब मुस्कुरायेगी
वो शाम कभी तो आएगी