सारी दुनिया से बेखबर धूल मिट्टी में खेलता
वो कोमल गुलाबी फ़रिश्ता सा बच्चा
चेहरे पर अखंड हंसी चिपकाये
कपड़ों की सुध ना तन की
भूख प्यास से बेखबर
घंटों खेलता
मिट्टी खाता खिलखिलाता किलकारियां भरता
परिचारिका उसे निहारती धन्य हो जाती
शाम ढले माँ काम से वापस आती
बच्चे का ध्यान ना रखने पर
परिचारिका को कोसती
ताने देती
फिर
नहाया सजाया
राजकुमार सा बच्चा
अब मखमली कालीन पर बैठता
बन्धनों में जकड़ा खुली हवा को तरसता
रंगों को ढूढता
सहमा उदास बच्चा रोता है
परिचारिका की आँखें भी नम हैं
उस मासूम की मुस्कान छिन जाने पर
अब दोनों खेलते हैं कुछ किलकारी रहित खेल