Wednesday, January 11, 2012

अपने आप में खो जाना कितनी आनंद की बात है


सारी दुनिया से बेखबर धूल मिट्टी में खेलता 
वो कोमल गुलाबी फ़रिश्ता सा बच्चा 
चेहरे पर अखंड हंसी चिपकाये 
कपड़ों की सुध ना तन की
भूख प्यास से बेखबर 
 घंटों खेलता 
मिट्टी खाता खिलखिलाता किलकारियां भरता 
परिचारिका उसे निहारती धन्य हो जाती 
शाम ढले माँ काम से वापस आती 
बच्चे का ध्यान ना रखने पर 
परिचारिका को कोसती 
ताने देती 
फिर 
नहाया सजाया 
राजकुमार सा बच्चा 
अब मखमली कालीन पर बैठता 
बन्धनों में जकड़ा खुली हवा को तरसता 
रंगों को ढूढता
सहमा उदास बच्चा रोता है 
परिचारिका की आँखें भी नम हैं 
उस मासूम की मुस्कान छिन जाने पर
अब दोनों खेलते हैं कुछ किलकारी रहित खेल