चाँद और तारों से ना मिल पाता सूरज
उषा से मिलने की चाह लिए
पर्वतों के पीछे से नीचे उतरता है
बिछोह और मिलन का ये रंग
अपनी गुलाबी आभा से
पर्वतों पर गिरी बर्फ और सारे आकाश को
इस रंग में रंग देता है
गहराता ये रंग कुछ पलों में लुप्त होता
छोड़ जाता है स्याह अंधकार
जीवन पर उतरता और चढ़ता
कोई भी रंग पक्का नहीं होता
फिर क्यूँ ये सिलसिला कभी थमता नहीं