Thursday, December 8, 2011

आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे


रोज़ रात आकाश को घंटो देखती हूँ
एक टूटते तारे के इंतज़ार में 
दिल के कोने में दबी हुई 
एक दुआ खड़ी है 
वर्षों से 
या रब अब तो कुछ कर 
धकेल दे उसे आकाश से नीचे 
सीधे आकर गिरेगा जब वो मेरे दामन में 
टांग लूंगी तब उसे कमरे की छत पर
 नज़रों के सामने दिल के करीब 
उसकी रोशनी में दमकती
मुस्कुराती जगमगाती
प्रेमासक्त होकर
लिखूंगी   
अहसासों से भरी 
हर दिन एक नई नज़्म 

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