रोज़ रात आकाश को घंटो देखती हूँ
एक टूटते तारे के इंतज़ार में
दिल के कोने में दबी हुई
एक दुआ खड़ी है
वर्षों से
या रब अब तो कुछ कर
धकेल दे उसे आकाश से नीचे
सीधे आकर गिरेगा जब वो मेरे दामन में
टांग लूंगी तब उसे कमरे की छत पर
नज़रों के सामने दिल के करीब
उसकी रोशनी में दमकती
मुस्कुराती जगमगाती
प्रेमासक्त होकर
लिखूंगी
अहसासों से भरी
हर दिन एक नई नज़्म