Monday, January 16, 2012

सूकून देता निश्चल प्रेम


उस दिन रात बहुत देर तक क्या लिख रही थी नहीं मालूम। किशोर के नगमे भी कुछ देर तक दिल बहलाते रहे फिर कब आँख लग गई ये भी नहीं मालूम। शायद आधी रात बीत चुकी थी। नीचे दरवाजे पर किसी के रोने, किकियाने की आवाज़ से आँख खुली। ओस से भीगी बहुत ही ठंडी रात थी। रजाई का मोह छोड़ पाना जरा मुश्किल लग रहा था। तभी फिर से वो कराह सुनाई देती है। मैं जल्दी से लाईट जलाती हूँ। घड़ी ३.३० दिखा रही थी। नीचे उतर कर दरवाजा खोलती हूँ। एक मासूम छोटा सा कुत्ते का बच्चा था जो अपनी पूंछ को समेटे कोने में पड़े पायदान पर अपने ही शरीर में गर्मी तलाशता कशमशा रहा था। 


नज़र उठा कर अपनी मासूम और बहुत ही प्यारी आँखों से अब मुझे देखने लगा। फिर धीरे से उठा, छोटी सी पूंछ को हिलाता मेरे पैरों पर आकर बैठने लगा। ये कैसा प्रेम हुआ ? उसने मुझे पहले कभी देखा नहीं, मैंने उसे खाने को कुछ दिया नहीं, अभी तक तो सहलाया भी नहीं। फिर भी वो इतना प्रेम क्यूँ दिखा रहा है, सोचती हुई उसके पास बैठ कर अब उसे सहलाती हूँ। करुणामयी, स्नेहिल आँखों से यदा-कदा उसे अपनी और देखते हुए मुझे उस पर ढेरों प्यार आने लगा। उसके निश्चल प्रेम से अब मैं भी अच्छा महसूस करने लगी थी। 

दया और स्नेहवश उसे उठाकर अन्दर लाती हूँ, हीटर के पास कालीन पर रख देती हूँ। रसोई से गर्म करके थोड़ा दूध और ब्रेड लाकर उसे देती हूँ।  वह झट-पट खुशी से पूंछ हिलाता खाने में मशगूल हो जाता है। पेट भर जाने पर आधा खाना वही छोड़ कर वो गिरता हुआ सा फिर से मेरे पैरों की गर्माहट पर ही बैठ जाता है और थोड़ी ही देर में नींद उसे बदहाल कर देती है। अपने सर को दोनों पैरों के बीच दबाकर वो सो जाता है। 

उसकी सहूलीयत के लिए धीरे से अपना पैर उसके नीचे से बाहर खींचतीं हूँ। वो सरकता, रेंगता हुआ फिर से मेरे पैर की गर्मी पर ही सर रख कर चैन से सो जाता है। खुशी और आपार स्नेह से अब आँखों में नमी महसूस करने लगती हूँ। उमड़ती ममता के साथ उस मासूम से जीव को सहला देती हूँ। फिर मुझे ओस से भीगी, पूस की ठंडी, स्याह, वीरान रात से कोई शिकायत नहीं हुई। 

सिमोन दि बोवुआर की  " एक गुमशुदा औरत की डायरी" पढ़ते हुए सोचती हूँ निश्चल प्रेम करना इंसानी फितरत में क्यूँ नहीं होता? अब बची हुई रात के उस हिस्से में प्रेम को परिभाषित करने लगती हूँ। कई अनुभव, रिश्ते, यादें, बातें सब टटोलती हूँ। कुछ भी ऐसा नहीं मिलता जहाँ पर जाकर रात ठहर जाती। बनते-बिगड़ते कई रिश्ते, दुनियादारी, समाज, दूर-दूर तक जाकर भी यादें खाली हाथ ही लौट आती हैं। 

झूठी खुशियों के लिए ही सही रिश्तों का भरम बना रहना चाहिए। जीवन का सफ़र थोड़ा आसान तो हो ही जाता है.......
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...