Monday, January 23, 2012

'संस्कार' ने मनाया सरस्वती पर्व

"हर दिन उत्सव का दिन है, एक- एक दिन आनंदमय जीते-जीते पूरा जीवन ही उत्सव सा जिया जाता है"
डॉ हेम भटनागर जानकी देवी महाविद्यालय की सेवानिवृत प्रधानाचार्या रही हैं, उन्होंने 1981 में हिन्दी को बढ़ावा देती 'संस्कार' नामक स्वैच्छिक संस्था की नीव रखी, कई पुस्तकों की लेखिका व वृषभदेव पुरस्कार, निष्काम सेवी पुरस्कार, बाल और किशोर साहित्य सम्मान और हिन्दी के क्षेत्र में विशेष योगदान के अनेकों पुरस्कार इनके हिस्से में हैं...84 वर्ष की अवस्था में आज भी उतनी ही सक्रीय हैं। 

22 जनवरी रविवार को संस्कार'  की सभा अनुभव आनंद ने सरस्वती पर्व मनाया। ठंडे दिन के बावजूद भी बहुत से उत्साही मित्रों की उपस्थिति बनी रही। इस बार सभा का आयोजन अध्यक्षा डॉ हेम भटनागर के घर पर ही किया गया। 

स्वागत और परिचय के बाद शुरू हुआ सरस्वती पूजन और बसंत के मधुर गीत, जो अध्यक्षा डॉ हेम भटनागर द्वारा लिखे और लयबद्ध किये गये थे। उन्हें मधुर स्वर दिया, संगीत साधिका श्रीमती प्रमिला भटनागर, अनिता चुघ, श्रीमती मधुलिका अग्रवाल व अन्य सभी साथियों ने। 

 यहाँ पर उम्र का अंतर नहीं होता संस्कार का यही एक ज़ज्बा मुझे बेहद आकर्षित करता है। सभी मस्ती में, मिल- जुल कर गाते और खुशियाँ बिखेरते हैं। 
संगीतमय सफ़र के बाद संस्कार सचिव श्रीमती मधुलिका अग्रवाल के द्वारा संस्कार की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई.....बीते माह और संस्कार गोष्ठियों का लेखा जोखा। उसके बाद संस्कार अध्यक्षा डॉ हेम भटनागर ने की कुछ बात मित्रों से। इस बार गोष्ठी का विषय था ' काव्यमयी,पौराणिक या साहित्यिक अपने परिचित फूलों की कहानियां। 
सभा को आगे बढ़ाते हुए फिर कुछ सदस्यों द्वारा वासंती सुगंध लिए कविता पाठ, फूलों पर लघु कहानियां और आलेख प्रस्तुत किये गये। श्रीमती मीना जैन (उपाध्यक्ष संस्कार)  श्रीमती इंदु जैन, कौसल्या गुप्ता (सेवानिवृत प्रोफ़ेसर मिरांडा हाउस), अनुराधा गुप्ता( समाज सेविका), कई पुस्तकों के लेखक व लेखिकाएं श्री धर्मप्रकाश जैन, जनक वैद, विभा जोशी (बाल भारती प्रकाशन), अंशु जैन, इंदु जैन, प्रकाश जी और श्री अर्जुन पांचोली आदि सदस्यों ने भी अपने विचार रखे। 
 अंत में सभी ने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। सभा के साथ ही पुस्तक प्रदर्शनी भी लगी थी, संस्कार की चतुर्मासी पत्रिका 'कलरव'  संस्कार का वार्षिक केलेंडर 'बारामासा' बाल लेखन और व्यस्क लेखकों द्वारा रचित पुस्तकें भी यहाँ पर उपलब्ध थीं। 

बसंत की आहट पहचानती बसन्ती बयार सी सुगन्धित,  आपसी मेल- जोल, लेखन और ज्ञान को बढ़ावा देती 'अनुभव आनंद' की ये सभा सरस्वती जी का आशीर्वाद लेती फिर मिलने तक संपन्न हुई।