Friday, October 14, 2011

अंतरात्मा से साक्षात्कार ( नारायण स्वामी आश्रम )

चंद रोज़ पहले धारचूला, पोस्ट ऑफिस कैलाश, जिला पिथोरागढ़ में स्थित नारायण स्वामी आश्रम में दुबारा दर्शन करने का सौभाग्य मिला वहाँ पहुँचते ही सर्वप्रथम मुलाकात वहाँ की व्यवस्थापिका एवं ट्रस्टी सेवा निवृत प्रधानाचार्य ) द्रौपदी गर्बियाल जी से हुई। 

मुझे देखते ही प्रसन्नचित होकर झट से बोलीं - " तो नारायण ने आपको इतनी जल्दी फिर बुला ही लिया, वे प्रेमी जनों को एकत्रित करते ही रहतें हैं।" इस बार भजन मंडली भी आई हुई है, संध्या समय आप सभी को खूब आनंद आयेगा। "  इसी वर्ष मई माह में नारायण आश्रम में मेरा पहली बार आना हुआ था।     



कुछ वक्त द्रौपदी जी के सानिध्य में ही बिताया। ढेर सारी बातें, अनुभव, उनका नारायण स्वामी जी के साथ बिताये पलों का वर्णन सुना और आनंदित होती रही। मेरे मन में उम्र के इस दौर (८० वर्ष ) में पहुँच गए व्यक्तियों के प्रति विशेष स्नेह व आदर होता है। उनके अनुभव व ममत्व से लाभान्वित होना आनंदित कर देता है। 

बातें करते हुए अचानक बीच में बोल उठीं। " हम तुम बच्चों को क्या दे सकते हैं यहाँ पर।" मैंने उनके अति प्रेममयी स्पर्श से भाव विभोर होकर कहा -"जो स्नेह और ममता आप जैसे व्यक्तियों से मिलती है, उसका कोई मोल नहीं है। अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझती हूँ कि जाने -अनजाने में आप जैसे निस्वार्थ समाज सेवी, 'खुद के लिए जिए तो क्या जिए' जैसा भाव रखने वाले महान विभूतियों के संपर्क में आ ही जाती हूँ। "




मुझे उनका भावुकता भरा चेहरा उस वक्त बेहद मासूम लगा, बच्चों जैसा........वैसे अपने वक्त में वे बहुत ही अनुशासन प्रिय एवं शख्त प्रधानाचार्य रही होंगी। बातों के बीच में आये कुछ प्रसंगों से मुझे ऐसा लगा। निस्वार्थ भाव मन में आते ही इंसान का ह्रदय कितना कोमल हो जाता है। 

दोपहर के भोजन का समय हो गया था। कोई सज्जन बुलाने आ गये। फिर से वही स्वादिष्ट अतिरिक्त प्रेम से परोसा गया मीठा भोजन। फिर कुछ देर बाद हम ऊपर पहाड़ियों पर घूमने गए। दूर दूर तक बुग्याल और जंगली फूलों की बहार एवं खुश्बू फ़ैली हुई थी। अचानक काले बादल घिर आये और बारिश शुरू हो गई। सो हम नीचे आश्रम वापस आ गए। इस बार आश्रम रंग-बिरंगे फूलों से सजा हुआ था। 


शाम ६ - ८ बजे तक गुजरात एवं अन्य जगहों से आये भक्तजनों से शानदार, कर्णप्रिय एवं मधुर भजन सुने।रात के भोजन के बाद फिर से खूब देर तक बातें की। तभी द्रौपदी जी ने बताया की कल दिन में वापसी के दौरान धारचूला के ही रिमझिम गावं में होने वाले कण्डाली महोत्सव जरूर देखतें हुए जाएँ। ये महोत्सव १२ वर्ष में एक बार मनाया जाता है। 


सुबह ६ बजे चाय की आवाज़ पर जब आँख खुली। चिड़ियों का अलग-अलग तरह का कलरव था। सुबह बहुत ठंडी थी। मगर आँख खुलते ही सामने खिड़की पर नज़र गई तो मानो यहाँ पर आना सार्थक हो गया। हिमाच्छादित पहाड़ियां और उस पर गिरती सूरज की पहली किरण की गुलाबी आभा। साक्षात् कैलाश दर्शन जैसा सुख। इससे खूबसूरत भी कोई सुबह हो सकती है क्या?

गहरे ध्यान की अवस्था में कैलाश दर्शन किए। उसके बाद प्रसाद स्वरूप नाश्ता किया और द्रौपदी जी व अन्य साथियों से जल्दी ही फिर मिलने का वादा करते हुए भावुक विदा ली।  



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