बहुत दिन हुए ये रुत नहीं बदली
सहारे के लिए कुछ शब्दों को पकड़ती हूँ
वो हमेशा की तरह साथ देते हैं
अपनी झोली से निकालते हैं
आशीष स्वरूप कुछ मीठे पल
तब हवाएं महकने लगती हैं
उदासियाँ मुस्कुराती हैं
वीराने आबाद हो उठते हैं
शामें खूबसूरत हो जाती हैं
बादलों की ओट से निकलने को
चाँद बेकरार हो जाता है
तुम्ही तो हो जो खुशी बनकर
आँखों से छलक आते हो
शब्द तुम कितने अच्छे हो
मेरे लिए ये रुत बदल देते हो