नयी उम्मीदें जगाते उगते हुए सूरज से
फिर मिलने की चाह बढ़ाती ढलती लालिमा से
जीवन से भरपूर आती हुई लहरों से
नई मंजिलें तलाशते छूटते दूर किनारों से
जिंदादिली से भरपूर रंगबिरंगे शोर से
दिलोदिमाग को झकझोरती अज़ब शांती से
मुस्कुराते बाहें फैलाते पूर्णिमा के चाँद से
सन्नाटे से बातें करवाते अमावस के अँधेरे से
मदहोश सुकून देते जंगलों के आकर्षण से
जगमगाते बाज़ार मधुर संगीत की रौनक से
शिकायत अब कैसे और क्यूँ हो मुझे
जब ज़िंदगी कुछ ऐसा रिश्ता है तुझसे मेरा