सुबह की ठंडी, मीठी धूप का आनंद लेने मैं लान पर बाहर आ गयी.....अति ठंडी हवा से चाय की जरुरत एवं तलब पर एक कप चाय का लाने को कहकर लॉन से दूर तक दृष्टि डालती हूँ... चारों तरफ हरियाली का भव्य आँचल उस पर वर्षों से खड़े, खूबसूरत देवदार ...सीधे अटल सीना तान कर....जैसे सच्चाई की जीत का जश्न मना रहे हों, इनका अनुपम सौन्दर्य मुझे हमेशा ही आकर्षित करता है।
अनुमान लगाने लगती हूँ जब इसपर बर्फ गिरती होगी तब भी ये इसी शान से बिना विचलित हुए यूँ ही खड़ा रहता होगा ? सुईनुमा पत्तियों वाला इसका विन्यास बर्फ के भार से लदकर थोड़ा झुक जाता होगा। जैसे-प्रकृति के विराट रूप पर मोहित होकर उसके आगे नतमस्तक हो गया हो। तब इसके सौन्दर्य पर चार चाँद लग जाते होंगे......
बीच - बीच में हिमालय की ठंडी हवा का झोंका बदन में सिहरन ला देता था जिससे मैं ना चाहते हुए भी देवदार के इस आकर्षण से बाहर आ जाती थी।
मायूसी से टेबल पर रखी ठंडी चाय को देखती......और सोचती हूँ....काश कोई एक कप गर्म चाय का फिर ला देता तो कितना अच्छा होता.........