Thursday, March 18, 2010

युन्ग्फ्राऊ (टॉप ऑफ़ यूरोप , स्विट्ज़रलैंड )


स्विटज़र लैंड की यात्रा का हमारा अगला पड़ाव था- युन्ग्फ्राऊ, ३५७१ मीटर ( ११,७८२ फीट )

अब पहुँच गए हम टॉप ऑफ़ यूरोप -  ( ११,७८२ फीट ) ऊंचाई पर पहुँच कर यहाँ से प्रकृति का और मानव निर्मित कला का उत्कृष्ट नमूना देखकर रोमांचित होना स्वाभाविक था। चारों तरफ बर्फ और बस बर्फ। 
लुसर्न मध्य स्विट्ज़रलैंड में स्थित है। जिसके पूर्व की ओर ऑस्ट्रिया, पश्चिम की ओर फ्रांस, उत्तर की ओर जर्मनी, और दक्षिण की ओर इटली है। थोडा -थोडा हम सभी दिशाओं में चलेंगे...


इन्र्लाकन -

आरे नदी के साथ-साथ चलता ये खूबसूरत शहर अपने अनुपम सौन्दर्य के लिए जाना जाता है। यहाँ पर ज्यादा जर्मन भाषा का प्रयोग होता है और कुछ इटालियन भी बोली जाती है। यहाँ पर गर्मियों व सर्दियों में विभिन्न खेलों का आयोजन होता है बौलीवुड की शूटिंग के लिए ये बेहद प्रिय जगह है... 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' 'द हीरो' आदि कई फिल्मों में आप यहाँ के दृश्य देख चुके होंगे यहीं से शुरू होता है युन्ग्फ्राऊ और टिटलिस की पहाड़ियों के लिए रास्ता, जिसे कॉग व्हील ट्रेन ( खाँचों में फंस कर चलते पहिए ) और गंडोला, रोटेयर द्वारा तय करना होता हैयुन्ग्फ्राऊ पूरे यूरोप मे काग व्हील रेल के लिए सबसे ऊँचा स्थान है। 

खूबसूरत रास्ते, फूलों की रंगीन छटा, अद्भुत हरियाली, धवल बर्फ से दिपदिपाते सौन्दर्य से भरपूर अपने नाम को (युंग- यौवना, फ्राऊ-महिला) सार्थक करता है। ऐसा नैसर्गिक सौन्दर्य देखकर मेरे मुँह से रोमांचित  हो निकला। 

"स्वर्ग भी शायद ऐसा ही होता होगा "  - जिसपर फिर सारा ग्रुप आखिर तक मुझे स्वर्गवासी लोग कहकर छेड़ता रहा और मैंने भी पूरी तरह इस बात को स्वीकार कर लिया था मरने के बाद किसने देखा, सोच कर एक भी पल ना गवांते हुए, प्रकृति के मनभावन रूप का आनंद लेते कई पहाड़ी सुरंगों से होते हुए हम ऊपर चोटी पर पहुँच गए

युन्ग्फ्राऊ


यहाँ पर एक होटल, दो रेस्तरां, एक ओब्सेर्वेटरी , एक स्की स्कूल, एक सनेमा हाल, एक रिसर्च सेण्टर व एक आइस पैलेस है। ट्रेन से बाहर निकल कर हमने रेस्तराँ में प्रवेश किया और एक मग गर्म चोक्लेट का पीकर बाहर बर्फ में निकल आए। अथाह बर्फ के बावजूद भी ठण्ड का नामोनिशान नहीं। पता नही ख़ुशी थी या जोश था ....अन्य लोग जहाँ कोट, टोपी, स्वेटर और मफलर से लेस होकर फोटो खींच रहे थे , वीडियो बना रहे थे और अपनी ठण्ड से लाल होती नाक को टिसू से सहला रहे थे....वहीं हमारी मई- जून की गर्मी से झुलसे हुए भारतीय लोगों का दल  (कुछ बुजुर्गों को छोड़कर) गर्म कपड़े हटा कर...बर्फ में खूब लोटपोट हो कर हँसते, खिलखिलाते खेल रहे थे। एक विदेशी ग्रुप लीडर ने बड़े ही आदर भाव से मेरे निकट आकर अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए कहा। 


"भारतीय बहुत रंगीन मिजाज़ और खुशदिल होते हैं और ज़िंदगी को भरपूर जीतें हैं.. "

हिम महल -( आइस पेलेस )

यहीं पर बना है हतप्रभ करता आइस पेलेस, बर्फ का महल। फिसलने के डर से सभी, साइड में लगी रेलिंग को पकड़ कर चल रहे थे। मुख्य द्वार से ही बर्फ शुरू हो जाती है। चारों तरफ बर्फ की भव्य दुनिया .....बहुत सी बर्फ से बनी आकृतियाँ जैसे मोर, पक्षी, शेर, भालू, बच्चे आदि की सजीव सी लगती आकृतियाँ और गुफाएँ मन मोह रही थीं अन्दर तापमान सेट होता है जिससे वहाँ पर बनी आकृतियाँ व आकार बने रहें। सफ़र की समाप्ति कर, अति आनंदित हो फिर हम नीचे उतरने लगे। 

इतना सब कुछ देखकर लगा धन्य है मानव और उसकी कलात्मक सोच आज एक बात तो ज़हन में जरुर आ रही है कि वहाँ पर सिर्फ ३५७१ मीटर (११,७८२ फीट ) की ऊँचाई पर ये सब बना दिया गया है। और हमारे भारत के १८,३८० फीट की ऊंचाई पर स्थित लद्धाक के खर्दुंग ला ..विश्व में सबसे ऊंचाई पर बना मोटर मार्ग में प्रकृति ने तो हमको इससे भी सुन्दर नज़ारा दिया है लेकिन वहाँ पर सिर्फ मुस्तेदी के साथ डटे हुए देश के वीर जांबांज सनिकों के अलावा और कुछ क्यूँ नहीं है...?? 

कहाँ क्या कमी है....? हम में...... या हमारी व्यवस्था में ....?

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