Friday, April 2, 2010

मुखोटे

















उस पागल व्यक्ति की तस्वीर पर

संवेदनाओं के अनेकों शब्द बहे
बड़ी बड़ी बातों से
सभी ने अपने आप को
मानवता का पुजारी घोषित कर दिया
अपने बड़प्पन का हक
अदा कर दिया
क्या फर्क पड़ता है
कुछ शब्द ही लिखने थे
अनायास ही यथार्थ
आ खड़ा हुआ सामने
अब समय था अग्निपरीक्षा का
पथरा गयी संवेदनाएं सभी की
तब देखा मैंने
वही लोग लिए जा रहे थे
काँधे पर रखकर
जीने की कोशिश करते
एक मासूम की खुद्दारी की लाश को

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