Sunday, October 4, 2009

रंगरंगीला उत्तराखंड ! Part - 1

कल ही उत्तराखंड यात्रा से वापिस आई हूँ और सबकुछ अभी आँखों में बखूबी समाया हुआ हैं, इसलिए यूरोप अगली पोस्ट में लिखूंगी।

रानीखेत - बेहद खूबसूरत उपनगर है। यह मेरा जन्मस्थान भी है। इसलिए यहाँ आकर अतिरिक्त प्रेम उमड़ रहा था। यहाँ पर भरपूर हरियाली व भाँति -भाँति की वनस्पतियों व फूलों से महकते हुए सर्पिलाकार रास्ते, ठंडक का अहसास कराती हुई हिमालय की स्वच्छ हवा व चीड़ के पेड़ों की खुश्बू और हिमालय की पहाड़ियों की अद्भुत छटा बिखरी हुई है।

दोपहर ४ बजे यहाँ पर पहुँचते ही बिना देर किये बचपन को पुनः जीने के लिए, यादों को जीवंत करने के लिए मैं सड़कों पर निकल पड़ी। बहुत कुछ बदला- बदला सा लेकिन बहुत कुछ बिलकुल वैसा ही था। वही गलियां, सड़कें, रास्ते, दुकाने, लाइब्रेरी, स्कूल आदि। परन्तु सब कुछ थोड़ा संकरे से लगे। शायद अब आँखों को दिल्ली के विस्तार की आदत हो गई है।

रानीखेत मेरी जन्मस्थली में मुझे जीवन के शुरूआती कुछ वर्ष यहीं पर जीने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। 



दूसरे दिन सुबह अपना प्रारंभिक स्कूल 'कैनोसा कॉन्वेंट' देखने का लोभ नहीं छोड़ सकी। मैं नर्सरी से पांचवी तक यही सिस्टर्स के सानिध्य में रही। वही गेट, झूले, कक्षा, खेल के मैदान, बिल्डिंग..सब कुछ एकदम वैसा ही। साफ़ सुथरा, मनभावन ....सब कुछ देखकर प्रेम आँखों के रस्ते उमड़ पड़ा था..अति सुखद क्षण ...

गॉधी चौक से लेकर मालरोड तक कितना धमाल मचाते थे हम सभी मित्र । न जाने वे दिन क्यों खो जाते हैं। हम क्यों बड़े हो जाते हैं। इसी बीच बाजार में विचरते हुए दो मित्र भी मिले गए। फिर हमने चाय के साथ जी भर कर उन यादों को फिर जिया ।से


द्वाराहाट -अगले दिन हमने प्रस्थान किया द्वाराहाट के लिए। जहाँ पर कुमाउँ इंजीनियरिंग कोलेज, स्वामी योगदानंद का योगदा आश्रम, व प्राचीनतम ग्यारहवीं,बारहवीं शताब्दी के बने मंदिर अवशेष भी हैं।


इन्हें देखकर पता लग रहा था कि आक्रमणकारियों ने हमारी इन धरोहरों को कितनी निर्ममता से ध्वस्त किया था ।

द्वाराहाट अति हरा-भरा मानसिक शांति देता मनोरम स्थान है। गाँव व क़स्बे का मिला -जुला रूप अपनी एक अलग ही कहानी कह रहा था......

जहाँ सुंदर मंदिरों का समूह देख कर मन अति आनंदित था तो वहीं पर इस धरोहर की संभाल न हो पाने से मन टीसता भी है .....अफ़सोस इस बात का है कि उचित देख-रेख के आभाव में जल्द ही आने वाली पढी इन सब से वंचित हो जायेगी .......


यहीं पर प्राकृतिक मीठे पानी का श्रोत ( नोहोला ) भी दिखा। पानी से लबालब भरा हुआ..अन्यथा बाकी जगह अब ये श्रोत लगभग सूख चुके हैं ....

ग्रामवासियों का अति प्रेम व आदर सत्कार स्वीकारते और उन्हें धन्यवाद देते हम वापस आ गए ......


अगला पड़ाव था दूनागिरी माता का मंदिर  (द्वाराहाट से 15 किलोमीटर ) व पांडवों के अज्ञातवास के दौरान का स्थान पॉडवखोली  ( द्वाराहाट से 17 किलोमीटर ) ..........


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