Saturday, September 19, 2009

लुसर्न के इर्द गिर्द



लुसर्न रौस नदी की कल-कल से गूंजता और भी खूबसूरत लगता है। यहाँ की मुद्रा स्विस फ्रैंक है व भाषा स्विस जर्मन प्रयोग में लाई जाती है। मैं आप सभी लोगों को इन जगहों का बहुत इतिहास नहीं बताउँगी वो गूगल सर्च पर भी मिल जाएगा। कुछ ख़ास जगहों के बारे में बताउँगी व कुछ संस्मरण भी ह्म्म्म...

वैसे भी चित्र कम ही हैं क्यूँ की उस समय वीडियो पर जोर था। अब अगर अपलोड करना आया तो कुछ अंश जरूर करुँगी। और कुछ चित्र एलबम में लैमिनैट हैं सो फोटो की फोटो ली है जो साफ़ नहीं आ पाई। लुसर्न की महत्वपूर्ण जगहों में हैं .........

डाइंग लायन- फ्रेंच क्रांति के समय जब कई सौ स्विस सैनिक मारे गए थे तो उनकी याद में ये बनाया गया था। इतनी बारीकी से इसे तराशा है की कलाकृति देखते ही बनती है। खूबसूरत साफ़ तालाब से सजा व भरपूर हरीतिमा से घिरा ये सैलानियों का बहुत प्रिय स्थान है ।

वाटर टैक- ये अष्टाकार आकृति तेरहवी शताब्दी में बनी थी। तब इसमें खजाना रखा जाता था। आज वाटर टैक, डाइंग लायन और चैपल ब्रिज स्विट्जरलैंड के मशहूर लैंडमार्क है.......
शीर्ष चित्र में आप देखें चैपल ब्रिज और पीछे अष्टाकार वाटर टैक।

चैपल ब्रिज- १३३३ में लकडी से बना हुआ यूरोप का सबसे प्राचीन पुल है जिसके भीतर १७वि शताब्दी की बहुत सी पेंटिंग्स लगी थीं. १८ अगस्त सन् १९९३ में इसमें आग लग जाने से बहुत नुकसान हुआ था, लेकिन आज भी बहुत उम्दा पेंटिंग्स देखने को मिल जाती हैं। रौस नदी के ऊपर बना ये पुल पुरातन कला का बेजोड़ नमूना है.........

नेचर संग्रहालय- यहाँ पर बहुत सी प्रजातियों के जीव व सुन्दर रंगबिरंगी तितलियों व बीटल्स की इतनी प्रजातियाँ हैं की आर्श्चय होता है। शोध करने वाले छात्रों के लिए ये अति उत्तम जगह है .......

मनोर, एपा, बुकॅरर, वगैरह कुछ शानदार बड़े शौपिंग स्टोर हैं जहाँ पर से सोविनियर (यादगार वस्तुएं ) खरीद सकतें हैं। स्विट्जरलैंड अपनी चौक्लेट्स के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इसके अलावा काऊ बेल, स्विस चाकू , घड़ियाँ वगैरह भी खूब बिकते हैं .........

ऊपर पहाड़ पर चढ़ कर कई बार मैं सारे लुसर्न का नज़ारा देखती थी। कभी कभी र्रौस नदी का साफ़ चमकता पानी, उसके इर्द गिर्द बाहर खिली हुई धूप में रेस्तरां के बाहर बैठे लोग खाते -पीते गपशप व मस्ती करते हुए समय बिताते थे ....कहीं भी चले जाओ नैसर्गिक सौन्दर्य तो जैसे सम्मोहित सा करता है.......

कुछ अन्य बातें याद करते हुए इस संस्मरण का ज़िक्र किये बगैर तो लुसर्न का वर्णन अधूरा रह जाएगा। वहाँ पर बुजुर्गों का इतना ध्यान रखा जाता है की देखकर मन आह्लादित हो गया था ........

शनिवार या रविवार को हर हफ्ते मात्र दस स्विस फ्रैंक (दस रूपये ) जमा किये जाते थे और पूरे दिन उन बुजुर्गों का खाने पीने से लेकर सारा मनोरंजन तक का ख्याल रखा जाता था। एक दिन बाबा (भाभी की 70 वर्षीय माताजी ) ने जाने का मन बनाया और मुझसे भी पूछा यदि मैं भी देखना चाहती हूँ तो चलू उन के साथ ......उत्सुकता वश कि कैसे रखते होंगे ये ४० -५० और ६० -८५ तक की उम्र के बुजुर्गों का ध्यान सोच कुछ कौतुहल हुआ....अतिथी के तौर पर मुझे भी इजाज़त मिली .....

शानदार लग्जरी कोच, जितनी सीट उतने लोग....... खड़े होकर लटक अटक जाओ और घूम आओ का कोई रिवाज़ नहीं। प्रातः ६ बजे सभी एक जगह पर इकट्ठा हो गए। ठीक समय पर बस आई , नौजवान ( ड्राइवर.... माफ़ करें ड्राइवर नही कहते वहाँ..... )कप्तान ने सभी बुजुर्गों को फ़िल्मी अंदाज़ में बड़ी शालीनता से एक हाथ से सहारा देकर एक एक कर ऊपर बस में चढाया .....मेरी बारी आने पर उसने भवों को कुछ इस तरह सिकोड़ा......मानो पूछ रहा हो-

"कितने वर्ष की बुढिया हो? " कुछ उसने कहा, कुछ मैंने कहा .....उसे अंग्रेजी समझ नही आई.....मुझे जर्मन समझ नही आई....

बाबा ने उसे अपनी भाषा में कुछ समझाया जिससे उसकी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा फिर, बड़े अदब के साथ उसने वो हाथ मेरी तरफ भी बढाया .....और मुझे अपना जवान होना और भारतीय नारी होना याद आ गया .....झट से हाथ पीछे खीच लिया और झट पट लगभग दौड़ती हुई सी बस में चढ़ गई ....उसके जोरदार ठहाके ने मेरा पीछा किया। 

बस हरे -भरे खूबसूरत फूलों व जंगल की मिली जुली खुश्बू से महकती हुई चलने लगी। वहीं कप्तान की सीट पर माइक भी लगा होता है........जिससे वो यात्रा का वर्णन बड़ी ही जीवन्तता से कर रहा था। बीच बीच में गाना भी सुना रहा था....मेरी समझ में गीत के बोल तो नहीं आ रहे थे लेकिन उसकी आवाज़ बहुत मधुर व साफ़ थी ये पक्का था ....सभी खुशी से चहक रहे थे जिससे उनके गुलाबी गालों की लाली बढती ही जा रही थी....


बाबा बोली -"ये कप्तान अक्सर आता है, बहुत ही खुशमिजाज़ व अच्छ लड़का है .......आज ज्यादा ही खुश लग रहा है ....गाना भी पहली बार सुनाया ...

" मैंने कहा -"बाबा आज ये और भी बहुत काम करेगा पहली बार ....."

जो बाबा की भावभंगिमा देखकर मुझे लगा की शायद उनकी समझ में नहीं आया .....
इस तरह हँसते मुस्कुराते ...२ घंटे का सफ़र तय हुआ....और एक हाल्ट आया।चाय, काफ़ी ब्रेक.........

काली काफ़ी का मोह छोड़ कर मैंने प्रकृति के अद्भुत रूप को निहारने का मन बनाया सो अपना कैमरा लेकर दूर जा निकली....कितना कुछ है इस संसार में सराहने व खुश रहने को.... प्रकृति का सौन्दर्य जादू सा मदहोश करता........आज भी वो यादें मेरे भीतर कही उतनी ही ताज़ा हैं उस जंगली घास व फूलों की भीनी भीनी खुशबू के साथ........

जिस काली काफ़ी को मैं दूर छोड़ आई थी, वो कप्तान महाशय उसे दो बड़े बड़े मग में लेकर मेरी तरफ आते नज़र आये ......भाषा के अभाव में भी बहुत कुछ सीख समझ लेते थे.......कोई फूल, वनस्पति, कीड़ा कही भी इशारा कर दो......वो बहुत कुछ बता देता था उन सब के बारे में.....किसकी दवाई बनती है या फिर कौन सा पौधा जहरीला होता है आदि......वो कुछ मैं नमूने के तौर पर मैं घर लायी और पुस्तक द्वारा व लोगो से पूछने पर लगा की कप्तान को भी अच्छा ज्ञान था.......

बुजुर्गो रूपी बच्चों का धमाल देखकर आनंद आ गया....बाल के पीछे भागना, नदी में भीगना, दूसरों को भिगाना, खाना, पीना, संगीत, कितना कुछ........ दूर से मैं इन सभी को मस्ती करते व खिलखिलाते देखती रही और अनायास ही अपने हिन्दुस्तानी बुजुर्ग याद आ गए......... आँखों में मायूसी लिए, असहाय, दुर्बल काया, बेबसी लिए, उपेक्षा से मुरझाये चेहरों के साथ मेरी आँखों के सामने तैर गए ........ रोकने की बेकार सी कोशिश के बावजूद भी अंजुरि भर आँसू छलक ही गए ..........

तभी एक स्नेहिल से हाथ का स्पर्श पाकर, थोडा चौंक कर पीछे देखा तो अंकल फेडरिक थे..... हँसमुख, रिटायर डोक्टर, मेरे व्यथित ह्रदय के भाव को भाँप दूर करने की कोशिश करते हुवे बोले -

" Dun be sad child,come n play with we young boys.... "

मैं उन्हें कैसे समझाती की जब तक हमारे बुजुर्ग घर और बाहर उपेक्षित हैं तब तक ये sadness तो छलकती ही रहेगी.......

उनके साथ खेलते कूदते समय अति तेजी से बीत गया.........थक कर सभी शाम की आखिरी चाय, काफी पी रहे थे तभी बुलावा आ गया वापस जाने का समय हो गया था। जब वापसी के सफ़र के लिए बस में चढ़े तो सभी की सीट पर गिफ्ट पैक रखे थे। कितना कुछ था उन सब के अन्दर .........मेरे पैकेट मैं एक सुन्दर सी गुड़िया भी थी .....जो आज भी मेरे घर की शोभा बढा रही है, और साथ में थीं ढेर सारी मीठी यादें .....


बहुत बाद तक भी बाबा के फ़ोन आते तो वो बताती थी की वो सब मुझे बहुत याद करतें हैं....

"और देखो में भी तो कर रही हूँ है ना ....??"

आगे का सफ़र फिर कभी..........



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