Tuesday, September 8, 2009

संस्कार ने 'अनुभव आनंद' की सभा में मनाया 'हिंदी दिवस'

"अपने जीवन को किसी एकांत क्षण में बटोर कर वर्तमान के बीते हुए दिनों की स्मृर्तियों से छू कर देखने पर हमारे भीतर एक प्रकाश की लहर दौड़ती है। वही तो हमें ठहराव की स्थिति में ला सकती है"
6 सितम्बर, रविवार को प्रातः का समय, सभी अति प्रसन्न। हिन्दी मातृभाषा के देश में हिंदी प्रेमियों का एक जगह पर एकत्रित होना सुखद क्षण था...प्रातः 10 . 45  पर मैं वहाँ पहुँची। संस्कार की संस्थापिका हेम भटनागर जी कुछ सहयोगियों की साथ वहाँ पहले से ही उपस्थित थीं। अपनी वही चिरपरिचित मुस्कराहट व सादगी से सुशोभित सभी कुछ व्यस्थित करवा रहीं थीं। दिखावे व आडम्बर से दूर एक हस्त लिखित व हस्त निर्मित बेहद खूबसूरत बैनर व संगीत वाद्य यंत्रों से सजा ये हाल एक अलग ही आभा बिखेर रहा था।

करीब 80 की वय का ये व्यक्तित्व व हिंदी प्रसार को अपने बेशकीमती 28  वर्ष देती हुयी, प्रेम बिखेरती, उत्त्साह वर्धन करती हेम जी आज भी ३० की वय के उन युवाओं को भी कहीं पीछे छोड़ देती है जो ज़िन्दगी की दौड़ में सामंजस्य ना बैठाता हुआ थका, हारा प्रतीत होता है।

जानकी देवी महाविद्याल में प्राचार्या पद को सुशोभित करती वे सादगी से भरपूर और हमेशा अनुशासन प्रिय रहीं। उनकी ठहराव ली हुयी, हौसला बढाती हुयी, सत्यता का पुट लिए बातें भीतर एक हलचल छोड़ जाती हैं व बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं। उनका कहना है।


और आगे कहती हैं। -"किसी की सहमती हो या असहमति, दोनों स्थितियों में उनके भीतर सोच जन्म लेती है"


हेम जी संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानती हैं व समस्त प्रवीणता के साथ निभातीं भी हैं...अनुभव आनंद की कोई सभा बिना संगीत के हुई  हो मुझे ज्ञात नहीं। बहुत ही मधुरता से सभी साथी राग, भजन व गीत गाते हुए वातावरण को संगीतमय व हर्षित कर देतीं हैं।

सर्वप्रथम हेम जी ने संस्कार के समस्त परिवार व छात्राओं के साथ अपने अनुभव बाँटें व बीते दिनों की सुन्दर यादों को संजोया। जिनमें हमेशा की तरह अच्छा जीवन जीने के सन्देश भी समाहित थे। 'कलरव' पत्रिका का उद्देश्य भी यही रहता है।

"कोई अच्छा विचार अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचे, कोई संवेदनशील क्षण भावुक हृदयों में हलचल मचा सके " और इसमें वे अक्षरशः सफल भी रहती हैं। थोडा विचलित होकर कह उठती हैं।

"मीडिया,टी वी, अखबार, नित्य भ्रष्टाचार की ख़बरों में चारों ओर शोर के बीच अपने को, व अपने बच्चों को, अपने आस-पास को कैसे बचायें रखें? यह प्रश्न कठिन से कठिनतर होता जा रहा है.."

उनकी पुस्तक 'समर्पित अमृत पुत्रियों को' का भी लोकार्पण श्री अजित सिंह (किरोड़ीमल कॉलेज) के कर कमलों द्वारा हुआ। सभा का इस बार का विषय था - 'अध्ययन व अध्यापन के अनुभव' , सभी ने अपने अपने विचार रखें जो आगामी 'कलरव' पत्रिका में प्रकाशित होंगे।



धन्य हैं वो अमृत पुत्रियाँ जिन्हें हेम जी जैसी गुरु का सनिद्धय व वरद हस्त प्राप्त हुआ। वक्त हाथों से छूटा जा रहा था और कहने सुनने को बहुत कुछ था , उनकी छात्राओं ने भी गुजारिश की दो शब्द बोलकर वो अपने गुरु के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहतीं हैं। गुरु के महात्म्य को व्यक्त करते समय शब्द कितने कम पड़ जातें हैं ..



छात्राओं ने जब बोलना शुरू किया तो सिलसिला चलता ही गया...कितने ही भाव बहे, स्नेह, श्रद्धा, आदर, मुस्कुराहटें, प्रेममयी अश्रुजल कितना कुछ था की समय को अनदेखा करना ही उचित जान पड़ा...

बहुत से पुरूस्कार अलग -अलग क्षेत्रों में योगदान के लिए अजीत जी के कर कमलों द्वारा दिए गए, अंत में मनभावन संगीत व प्रसाद स्वरुप स्वादिष्ट भोजन कर मीठी यादें लिए सभी एक बार फिर बिछुड़ गए पुनः एकत्र होने के लिए....



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