Friday, July 31, 2009

अनुभव आनंद के पल !


कुछ दिन पूर्व डाक द्वारा खूबसूरत , हस्तलिखित निमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ अनुभव आनंद की मीटिंग का था। फिर मित्र का फ़ोन आया -"कैसा लगा अनुभव आनंद का निमंत्रण पत्र? हस्तलिखित, कंप्यूटर की दुनिया से दूर...चल कर देख लें आप को अच्छा लगेगा। वैसे तो अनुभव आनंद नाम ही बहुत था आकर्षित होने के लिए।


नियत समय 10.30 बजे प्रातः रविवार को हम नियत स्थान पर पहुँचे। रंगबिरंगी साड़ीयों में संजीदगी से सँवरी लेखिकाएँ व बहुत कम संख्या में लेखक भी उपस्थित थे लगभग 50 - 60 के करीब। मित्र द्वारा परिचय करवाने पर सभी का गर्मजोशी व अपनत्व से मिलना मन को अति भा गया। ये थी संस्कार की सभा।

'संस्कार' का जन्म 1981 में हुआ व इसका उद्देश्य बच्चों व वयस्कों में नैतिक मूल्यों का प्रतिस्थापन करना है। साहित्यिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पुस्तक प्रकाशन करके सौन्दर्य बोध की पहचान कराना अहिंसा, प्रेम, तथा औचित्य का वातावरण बनाना इस का संकल्प है। इसके साथ ही पक्षियों के कलरव के सामान अत्यंत सहज, सरल व सुंदर चतुर्मासिक पत्रिका 'कलरव ' का भी सम्पादन हुआ।

उसी दिन उनके द्वारा लिखित पुस्तक 'पाँचों नौबत बाजती 'का लोकार्पण भी था। इस पुस्तक को उन्होंने अपनी छात्राओं को समर्पित किया है। कितना मधुर नाता व स्नेह रखतीं हैं वे सभी से। इस पुस्तक में उन्होंने कबीर को अलग-अलग रूप में देखा है। उन्होंने कबीर को शिक्षाविद ,संगीतज्ञ ,लोक गीतकार ,योगी ,साधक और भी बहुत से रूपों में ढाला है।

पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर हेम दी का एक मनोहारी चित्र है जिसे देखकर लगता है जैसे वे कबीर के दोहों में तल्लीन होकर भाव -विभोर हो उठी हों। किन्तु पुस्तक के अन्दर उन्होंने बताया है कि वह नियाग्रा फाल्स के तुषार कणों के स्पर्श से अभिभूत क्षणों में लिया गया चित्र है। 

अभी ये सब सुन समझ ही रही थी, तभी सामने से सौम्य,शान्त, सादगी की मूर्ती सी दिखलाई दी। वे थीं हेम दी, डॉ हेम भटनागर..'संस्कार' की संस्थापिका।

लगभग ८० वर्षीय अनुभवों का समृद्ध कोष लिए हुए। उनके बारे में कुछ कहना दीये को रौशनी दिखाने जैसा है। जानकी देवी महाविद्यालय में कई वर्षों तक प्राचार्या पद को सुशोभित कर ( तत्पश्चात प्रधानाचार्या ) अध्यापन के अनुभवों (इस नाम से पुस्तक भी प्रकाशित ) को निष्ठा पूर्वक निभाती हेम दी आज भी कई संस्थाओं व हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार को बढावा देती व्यस्त रहतीं हैं। हिंदी भाषा की अमूल्य साहित्यिक धरोहर व निधि को भली भांति संरक्षित करती दूसरों को भी उत्त्साहित करती रहतीं हैं। 

कार्यक्रम के द्वितीय चरण में कुमार गन्धर्व जी के पौत्र भुवनेश कोमकली जी ने अपने गायन -अवधूता 'युगन युगन हम योगी ' व कुछ अन्य रगों से सभी को मंत्रमुग्ध किया। कुछ गायन अपनी मधुर आवाज़ में महिला सदस्यों ने भी प्रस्तुत किया।

अंतिम चरण में शुद्ध ,सात्विक , स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हुए हम सभी परिचय को और बढाते हुए हास -परिहास व पुस्तक -चर्चा करते व्यस्त थे तब...सभी पर अपनी स्नेह वर्षा करती हुई हेम दी मेरे निकट पहुँची। मेरा हाथ पकड़कर स्नेहिल हो बोली -

 "सब कुछ ठीक रहा ना? आगे तुम्ही लोगों को संभालना है।"

उनकी ज्ञान भरी ममतामयी बातों व स्नेहिल स्पर्श से मैं आह्लादित हो उठी। अति आनंद का अनुभव करते हुए मैंने सभी से अगली गोष्ठी तक के लिए विदा ली। 




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