कुछ दिन पूर्व ही शाम को ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन की आरती देखने पहुंचे। छोटे छोटे गुरुकुल के पीत वस्त्रधारी बच्चे इतनी खूबसूरती से भजन गा रहे थे कि मन बिभोर हो उठा। गंगा की पावन लहरों पर विराजमान शिव की विशाल साक्षात् रूप दिखाती मूर्ति अत्यंत भव्य थी।
शिव भक्त हूँ इसलिए मुझे यहाँ पर कुछ ज्यादा ही आनंद आता है । और यहाँ जाने का मैं कोई भी मौका नहीं छोड़ती हूँ। गंगा के पावन जल पर विराजमान शिव की ये भव्य मूर्ति आह्लादित कर देती है। भजन, कीर्तन और आरती करते हुए एक घंटे का ये समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। यह वहां क्रम है। विदेशी भी सैलानी भी इसका खूब आनंद लेते हैं। इसके बाद हरिद्वार के पतंजलि योग को देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
पतंजलि दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट ) हरिद्वार के योग गुरु बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। इस योग मंदिर की स्थापना 5 जनवरी 1995 को हुई थी। स्वामी रामदेव के योग की अलख ने भारत को न केवल विश्व में गौरवान्वित किया बल्कि मानव सेवा की दिशा में स्वामी जी ने 'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' और वसुधैव कुटुम्बकम ' के भारतीय दर्शन को भी विश्व पटल पर पुनः स्थापित किया है।
मुख्य द्वार के अंदर प्रवेश करते ही बहुत सुकून का अनुभव हुआ। यहाँ पर चारो तरफ हरियाली, फूल, जड़ी बूटियाँ, बेहद साफ़ प्रांगण व जगह - जगह पर प्राणायाम करते व्यक्तियों को देख कर मन आह्लादित हो गया। भारतवर्ष में जहाँ बहुत जनता जनार्दन का हस्तक्षेप हो वहाँ पर इतनी साफ़ सफाई जरा कम ही देखने को मिलती है। परन्तु पतंजलि योग में अत्यंत साफ़ -सफाई का ध्यान रखा गया है। हरियाली चारों तरफ बिखरी हुई है।
उस दिन स्वामी रामदेव डॉक्टर्स के प्रशिक्षण कैंप में व्यस्त थे व आचार्य बालकृष्ण एक मीटिंग में। उनके आने तक एक सहायक का सहयोग मिला जिसने 'अतिथि देवोभव ' को चरितार्थ करते हुए सारे क्षेत्र का दर्शन कराया। लैब, पंचकर्म, षट्कर्म, वगेरह.. सब आधुनिक मशीनों से युक्त , हर्बल तेलों, वनस्पतियों व जड़ी बूटियों से लाभान्वित प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सकों की देख- रेख में होता है।
कुछ देर बाद हमने आचार्य बालकृष्ण के कक्ष में प्रवेश किया। वे अपनी सरल मुस्कान के साथ बहुत ही सहजता से मिले। अपने उस भव्य कक्ष में कई ट्राफियों व पुस्तकों के बीच घिरा वह व्यक्तित्व मुझे बहुत ही सकारात्मक उर्जा व सोच से लबालब प्रतीत हुआ। बातें करते हुए इतना अपनापन था कि वह उनसे पहली मुलाकात नहीं लगी।
विद्यार्थियों के लिए योग की कुछ अप्रकाशित पुस्तकें दिखाते हुए वे बहुत उत्त्साहित नज़र आ रहे थे। सभी कक्षाओं में योग कैसे सरलता से सिखाया जाय उन पुस्तकों में यही सब बखूबी वर्णित था। हर क्षेत्र में उनका योगदान , सोपान दर सोपान आगे बढ़ते चलना अद्वितीय है।
आचार्य जी से हमने उनके शुरूआती दिनों के कई किस्से सुने व इस महान उपलब्धि प्राप्त होने तक बीच - बीच में आए कुछ खट्टे -मीठे अनुभव भी सुने। इन को वे परेशानी न समझ कर किस्से के रूप में ही सुना रहे थे। जिस पर उनके साथ ही हम सब भी खूब दिल खोल कर हँस देते थे।
उनकी इतनी सहजता व सरलता को देख कर लगा ही नहीं कि मैं विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने वाले पतंजलि योग के महामंत्री के सामने बैठी हूँ । उनका व्यहार कुशल होना , विनम्र , सहज , सरल , अंहकार से दूर रहना अद्भुत है। उनका अनुसरण करने को सब लालायित रहते हैं। ये कुछ विषेश गुण है जो उन्हें महान व्यक्तियों की श्रेणी में विराजमान करते हैं।
विदा करते समय उन्होंने श्रीमद् भगवत् गीता ' गीतामृतम ' व उपहार देकर मुस्कुराते हुए हमसे प्रतिदिन योग करने का वादा लिया और हरिद्वार , औरंगाबाद व अन्य स्थानों पर भी पतंजलि योग पीठ देखने आने का आमंत्रण दिया।