Monday, July 13, 2009

इन्तहा इन्तजार की






















उस दिन खूब पानी बरसा
झमाझम झमाझम
उनके आने का वादा था
इन्तजार की घड़ी
सड़क सी लम्बी होती गई

मिनिट घंटे दिन भी बीता
निष्ठुर समयन्तराल
दस वर्षों का दस युग समान
उम्मीद की हल्की किरण
व्यथित ह्रदय को सांत्वना दे
हर आहट पर चौंका सा देती

उनका पसंदीदा इत्र लगा
बालों को करीने से सवांरा
साड़ी का पल्लू टिकाते
दर्पण में निहारा
चेहरे पर छाई लालिमा में
हाले दिल बयां था

दरवाजे पर दस्तक हुई
उत्साह का भाव दबा कर
द्वार खोले तो पाया
अपरिचित मुस्कान गुलदस्ता व पत्र

आना नही हो पायेगा
मुस्कुराते रहना 'सदा '
भरी मन व क़दमों से
अश्रुपूरित नेत्र लिए
बारिश देखना
मुझे भाने लगा ...........




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