मैंने भी सपने बुने थे
इन्द्रधनुष के रंगों से
कुछ हुए पूरे
कुछ रहे अधूरे
जीवन पथ पर चलते चलते
अकस्मात एक दिन
रिमझिम बौछारों ने
मिटटी की सोंधी खुशबू ने
नभ से आँखमिचोली करते
सूरज के एक कतरे ने
निर्मित किया
उस इन्द्रधनुष को
उस मेरे मन के इन्द्रधनुष को
अपलक देख उस दृश्य को
खो गई मधुर स्मृतियों में
अनजानी दुनिया में
अनजानी राहों पर
खो जाना अक्सर
मेरी आदत में शुमार हैं
कभी .....
प्रकृति के नयनाभिराम सौन्दर्य में
कभी ...
वक्त की अठखेलियों में
स्मृति टूटी तो पाया
विलुप्त होते इन्द्रधनुष को
बदलते हुए .....
फुहारों को बौछारों में
और तृप्त होकर
अधरों पर मंदस्मिता लिए
नए रंगों की तलाश में
जीवन पथ पर चलते चले