इस पौधे से मुझे विशेष लगाव है... नागफनी से .. महादेवी वर्मा ने इसे अपने एक लेख में कुटज का नाम दिया था।
ये अनगिनत काँटों के बीच हरदम मुस्कुराता सा प्रतीत होता है। कभी -कभी इसमें सुर्ख लाल फूल भी खिलता है जो मुझे इसकी खिलखिलाहट सी लगती है।
कभी अखबार में पढ़ा था इसके बारे में चंडीगढ़ का कैक्टस उद्यान ....सोचा चंडीगढ़ का रॉक गार्डन ( नेकचंद गार्डन ) तो कई बार देखा लेकिन कैक्टस उद्यान देखने से कैसे वंचित रही? फिर छुट्टियों में प्रोग्राम् बनाया। चंडीगढ़ जाते ही इसका पता किया। कुछ विख्यात नहीं था शायद ( या काँटों से लगाव इतना आसान नहीं है ) पूछने पर मुश्किल से ही पता चला। ये पंचकुला नामक स्थान में अपना सौन्दर्य बिखेर रहा था।
विश्व में इसकी हज़ारों प्रजातियाँ पाई जाती हैं। अलग अलग आकार ,रूप और रंगों में। इनकी वृद्धि बहुत ही धीमी गति से होती है इसलिए कई वर्षों बाद भी ये मामूली से ही बड़े दिखाई देते हैं।
कुछ-कुछ ग्लोब कैक्टस तो गुम्बद जितने बड़े हो गए थे। सर्वत्र बिखरे हुए काँटेनुमा सुन्दर बॉल जैसे। कई जायंट कैक्टस इतनी लम्बाई ग्रहण कर चुके थे कि तेज हवा के झोंकों से बचाने के लिए इन्हें तारों से घेर रखा था। उनके बारे में व वे कितने वर्ष का पौधा है ये सब वहाँ पर वर्णित है। अपार हर्ष के बीच उन्हें अपनी यादों में संजोने के लिए मैंने कुछ फोटो भी लिए।
ये मेरे कुछ ज्यादा ही स्नेहपात्र इसलिए भी हैं कि जब कभी कुछ दिन के लिए मैं अवकाश में बाहर जाती हूँ तो लौटने पर कई दिन तक बिना धूप ,पानी प्राप्त किए भी मेरे ये प्रिय कुटज ही मुस्कुरा कर मेरा स्वागत करतें हैं।