Monday, March 30, 2009

मैं और मेरे बिन बुलाये विचार !











मेरे ऊपर बड़ी मेहरबानी है इन बिन बुलाये विचारों की.... आकाश में हवा के झोंकों से अठखेलियाँ करते हुऐ बादलों की तरह ,कही से भी लहराते, झूमते ये मेरे ऊपर मेहरबान हो जाते हैं।

थोड़ा संयत होकर झटक कर कुछ पल के लिए इन्हे अपने आप से दूर कर देती हूँ। परन्तु अगले ही क्षण शीघ्र ही कुकुरमुत्ते की तरह ये पुनः सर उठा लेते हैं।

इनके बहुत फायदों में से एक ये भी है की जब कभी भी किसी अप्रिय या निरर्थक बातों को संस्कारवश या सम्मान वश सुनना पड़ता है (जो मेरी आदत में शुमार है ) तो नज़र एकटक सुनाने वाले के चेहरे पर जमी होती है और हम अपने इन बिन बुलाये विचारों के साथ बहुत दूर उन्मुक्त विचरण कर रहे होते हैं। सुनाने वाला भी अपने मन का बोझ हल्का कर के खुश हो जाता है। ऐसा मेरा मानना है।

सबसे बड़े नुक्सान के तौर पर इन बिन बुलाये विचारों के चले आने से ट्रैफिक जाम करवा देने में मेरा भी बहुत बड़ा योगदान होता है। रेड लाइट समाप्त हो जाने के बहुत बाद तक भी ,ये मेरे बिन बुलाये विचार मेरा पक्का साथ निभातें रहतें हैं।

उस समय मैं दुनिया के दौड़ते -भागते चेहरों को पढने की कोशिश करती हुई उनमें अपनी नई कहानी के नायक ,नायिका ,या नए पात्र खोज रही होतीं हूँ ..या फ़िर कविता के लिए नए भाव ...

कभी कभी पतिदेव भी शामिल होते हैं , मेरे इन बिन बुलाये विचारों के दरमियान ....

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