"अब थकने लगा हूँ" व्यथित लड़के ने माथे पर बल डाले।
"यह उम्र की नहीं, काम की थकन है" लड़की को चाय बार में चलते शोर में अपनी आवाज़ थोड़ा ऊंची करनी पड़ी।
"जो भी"
"तुम सच में अभी से थकने लगे हो?" हैरत भरा सवाल लड़के के पाले में गिरा।
"हाँ सच में। रोज की मारा -मारी, भाग दौड़ अब हो नहीं पाता"
"ऐसा करो तुम अपनी फरारी बेच दो और सुकून पाओ" लड़की ने गहरी नज़रें उसके चेहरे पर अटका दी।
"मेरे पास फरारी नहीं है" सहमा हुआ एक कतरा मुस्कान का उसके होंठों पर तैर गया।
"होती भी तो कौन सा मेरे कहने से झट बेच देते" प्रेम में परीक्षा लेते रहना हर लड़की का अधिकार है।
"है ही नहीं तो क्या बेचू?"
"हम्म तुम्हारे सुकून भरे दिन अभी नहीं आने वाले"
"मतलब?"
"मतलब कुछ नहीं। चाय पी लो ठंडी हो रही है" दोनों खामोशी से अपनी -अपनी हिस्से की थकन और परेशानियों को चाय में घोलकर पीने लगे।