' फैलसूफ़ियाँ ' ( इसी पुस्तक से - ऐश करना, तामझाम ) राजीव तनेजा द्वारा लिखित व्यंग संग्रह है। यह पुस्तक उन्होंने मुझे जनवरी में कुरियर की थी। लेखक से रूबरू होने पर लगता नहीं कि यह अल्पभाषी, सौम्य लेखक इतनी शिद्दत से व्यंग रच सकता है। किन्तु अक्सर उनके चुटीले व्यंग, तंज और कटाक्ष मुस्कराने की कई वजह दे जाते हैं। अपने स्वयं के व्यंग लेखन पर मेरी कलम अड़ियल रवैया अपनाने लगती है। चूँकि पुस्तक मुझे भेंट स्वरूप प्राप्त हुयी अतः लिखना हर हाल बनता था। घटना प्रधान रचनाओं पर आधारित यह व्यंग संग्रह 'अधिकरण प्रकाशन ' (मूल्य -१५०/- ) से प्रकाशित हुआ है।
यह लेखक की पहली पुस्तक है, पहला प्रयोग है। एक सौ साठ पृष्ठों की इस पुस्तक में दस व्यंगात्मक लेखों के संकलन हैं। इसे संवाद शैली में व्यंगात्मक पुट के साथ बखूबी रचा गया है। अपने समय को और दैनंदिन जीवन में अपने इर्द -गिर्द हुयी घटनाओं को चैतन्य और चौकन्ना हो कर देख पाने की पैनी दृष्टि से लेखक समृद्ध हैं। बेहद सहज व सरल भाषा में लिखी यह पुस्तक हर वर्ग के पाठकों के लिए है।
अपनी कलम से उन्होंने व्यंग और तंज की आड़ में समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और ढोंगी बाबाओं पर गहरा प्रहार किया है। इसमें आजकल व्याप्त प्रेम के नाम पर होने वाले धोखे के किस्से भी हैं। कहीं ऐसे संवेदनहीन और झोलाछाप डॉक्टरों का भी ज़िक्र है जिन्होंने अपने पेशे की गरिमा को ताक पर रखकर केवल पैसा कमाने को अपना मुख्य उद्देश्य बना रखा है।
संवाद शैली में लिखे होने से इस संग्रह की रचनाओं में नाटकों का अक्स दिखता है। इसी तरह सतत लिखते हुए यदि कभी लेखक की कलम व्यंगात्मक नाटकों की रचना कर दे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसी शुभकामना सहित।