Wednesday, January 16, 2019

जार्ज बर्नार्ड शॉ ने सिखाया है - किताबें भेंट क्यों नहीं करनी चाहिए

वरिष्ठ साहित्यकार सूरज प्रकाश जी की पुस्तक 'लेखकों की दुनिया' पढ़ रही थी। कई लेखकों के बारे में बेहद गहन अध्ययन के बाद संकलित यह कमाल की पुस्तक है। पुस्तक देश -विदेश के साहित्यकारों में रूचि रखने वाले जरूर, जरूर पढ़ें। वादा है आनंद में रहेंगे। 

उसमें 'लेखकों के रोचक किस्से' शीर्षक के अंतर्गत ज़िक्र आया - जार्ज बर्नार्ड शॉ का। एक दिन जब जार्ज बर्नार्ड शॉ फुटपाथ पर लगे किताबों के ठिये के पास से गुज़र रहे थे तो उन्हें किताबों के ढेर में अपनी एक किताब नज़र आयी। उत्सुकतावश उन्होंने जानना चाहा कि इस किताब का फुटपाथ पर लगी पुस्तकों के ढेर तक पहुँचने का रास्ता क्या रहा होगा? उन्होंने किताब उठायी और देखा कि उस किताब को अरसा पहले उन्होंने एक मित्र को हस्ताक्षर सहित सप्रेम भेंट की थी। उन्होंने उस पुस्तक को पुनः खरीदा। साफ़ किया और पहली भेंट के नीचे लिखा, 'तुम्हें पुनः भेंट प्रिय मित्र' उस पर तारीख डाली और किताब उस मित्र के पास फिर से भिजवा दी। मैंने भी 2015 में अपनी पहली व उसके बाद दूसरी पुस्तक प्रकाशित होने के उत्साह में चंद साहित्यकारों को अपने पुस्तकें सप्रेम भेंट दी। 

1- सबसे पहली समीक्षात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई खूब अध्ययन और लेखन करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार रूप सिंह चंदेल जी की तरफ से। उनके उपन्यासों की मोटाई देखते हुए मैं भयभीत रहती हूँ। हम इतना कभी नही लिख सकते। सोच भी नहीं सकते। बदले में उनका कहना -"कोई मुश्किल काम नहीं है। खूब मेहनत करिए।" अब इतनी मेहनत करनी जो हमें आती होती तो हमारा उपन्यास मात्र 160 पृष्ठ में ही थोड़े सिमट जाता। प्रकाशक नीरज जी ने बहुत कहा "कम से कम ढाई सौ पृष्ठ तो कर दीजिए।" फिर वही बात। कैसे? बहरहाल चंदेल जी से वर्ष में एक बार विश्व पुस्तक मेले में भेंट हो जाती है। अपनी अति व्यस्तता के बावजूद उनके द्वारा मेरी पुस्तक पढ़ना और उस पर मुझे लिखित उम्दा प्रतिक्रिया मिलना, मेरा अभिभूत हो जाना स्वाभाविक है। 

2- दूसरी समीक्षा के रूप में प्रतिक्रिया मिली तो वह हिमाचल के वरिष्ठ साहित्यकार बद्री सिंह भाटिया जी की तरफ से। उन्हें मैंने मेल द्वारा पुस्तक भेजी थी। भाटिया जी से मैं इस वर्ष 2019 विश्व पुस्तक मेले में पहली बार रूबरू हुई। सरल, सौम्य भाटिया जी ने बताया कि वे पिछले कुछ वक्त से अस्वस्थ थे। कुछ एक शल्य चिकित्सा से भी गुजरे। ऐसे हालात में भी उन्होंने मेरी पुस्तक पढ़ी और अपनी पैनी दृष्टी से हर वाक्य और भाव को परखते हुए उम्दा समीक्षा लिख कर मुझे मेल द्वारा भेज दी थी। सब जानकार मैं आगे समझ ही नहीं सकी अब उनसे क्या कहूं? भावुक मन न जाने कैसा -कैसा हो गया। 

3- इसी तरह महादेवी सृजन पीठ (कुमायूं विश्वविद्यालय, उत्तराखंड ) के निदेशक प्रोफ़ेसर देव सिंह पोखरिया जी को मैंने मेल द्वारा अपने पहले उपन्यास ' पहाड़ की सिमटती शाम' की पाण्डुलिपि भेजी। अपनी अति व्यस्तता के बावजूद भी उन्होंने उपन्यास को न केवल गहराई के साथ पढ़ा अपितु मेरे मनोभावों को बखूबी समझते हुए पूरे उपन्यास को संक्षिप्त भूमिका के रूप में समेट कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। अपने अनुजों का हौसलाअफ़ज़ाई करने वाले ये वरिष्ठ, विनम्र और नेक साहित्यकारों के प्रति मैं दिल से आभार व्यक्त करती हूँ, उन्हें नमन करतीं हूँ। 

मेरी बाकी भेंट की हुई पुस्तकों का क्या बना, नहीं मालूम। शायद किसी दिन मुझे भी 'सादर भेंट स्वरूप' व अपने हस्ताक्षर वाली वे पुस्तकें नई सड़क के रविवार को लगने वाले फुटपाथ पुस्तक मेले के ढेर पर दिख जाएंगी। मैं उन्हें खरीद तो लूंगी किन्तु वापस उन्ही व्यक्तियों के पास नहीं भेजूंगी। मैं कोई जार्ज बर्नार्ड शॉ थोड़े ही हूँ। 


पुस्तक का पता रहेगा।   

' लेखकों की दुनिया '  
किताबवाले 
22 / 4735, प्रकाशदीप बिल्डिंग, 
अंसारी रोड, दरियागंज 
नई दिल्ली - 110002 

सूरज प्रकाश जी की हस्ताक्षरित प्रति प्राप्त करने के लिए निःसंकोच उनके मोबाईल पर संपर्क कर सकतें हैं - 9930991424 

 



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