नैनीताल से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह सेनिटोरियम कुछ वर्ष पूर्व तक भी बेहद मशहूर था। कहा जाता था कि यहाँ पर स्थित चीड़ के वृक्षों की बहुतायत से यहाँ की आबो -हवा टीबी रोगी के फेफड़ों के लिए उत्तम होती है।
225 एकड़ में फैला, देश - विदेश में ख्याति प्राप्त भवाली का यह ट्यूबरक्लोसिस का ( टीबी - क्षय रोग ) सेनिटोरियम सन -1912 में किंग जॉर्ज एडवर्ड VII द्वारा बनवाया गया था। यह रामपुर के नवाबों की ज़मीन पर बना था।
कभी इसमें 378 बेड थे। जिनमें से अब केवल 100 के करीब ही रोगियों को दिए जातें हैं।
पंडित जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू जी ने भी यहाँ पर ( 10 मार्च 1935 - 15 मई 1935 ) करीब दो माह रह कर स्वास्थ्य लाभ किया था। बाद में 28 फरवरी 1936 में 37 वर्ष की अवस्था में स्विट्ज़रलैंड के एक सेनिटोरियम में उनका देहावसान हुआ।
मशीने खस्ता हाल, साधन समाप्ति के कगार पर। सरकारी फंड के आभाव में अब इसकी जीर्ण हालत देख कर इसकी दुर्दशा का अनुमान लगाया जा सकता है।
अब नई खोज और औषधियों से इस क्षय रोग पर नियंत्रण आसान हो गया है। किन्तु अब भी तीन महिला क्षय रोगी वहां के महिला वार्ड में थीं। उनकी अपनी कहानियां थीं। पुरुष वार्ड में कुछ पुरुष क्षय रोगी भी थे।
वहीं पर काम करने वाली करीब पचास की वय की शांति जी से बात की तो वे बेहद मायूसी के साथ बोलीं। "मेरी माँ ने यहीं काम किया था। मैं भी यहीं पैदा हुयी, बड़ी हुयी अब यहीं सेवारत हूँ।" उनके पास गुज़रे वक्त की ढेरों अच्छी - बुरी कहानियां थीं। न जाने कितने रोगी स्वस्थ्य होकर गए और कितने ही हमेशा के लिए यही की जमीन में समां गए।
इस सीलन से भरी खस्ताहाल लाइब्रेरी में बहुत सी अंग्रेज़ी और हिंदी की पुस्तकें उस समय की यादें समेटे हुए थीं। कुछ जो पढ़ने के शौक़ीन रोगी होते हैं वे पुस्तकें ले जाकर पढ़ते थे और वर्तमान में भी पढ़ते हैं।
मरीजों के लिए सन 1937 का बना हुआ मनोरंजन केंद्र भी है। जिसमें रोगियों को समय -समय पर चलचित्र दिखाए जाते थे एवं अन्य कार्यक्रम भी होते थे।
जल्द यह सेनिटोरियम भीमताल में स्थित ' गेठिया ' नामक स्थान पर शिफ्ट कर दिया जाएगा। सरकार की योजनाएं और बड़ी - बड़ी बातें सिर्फ हवाओं में तैरती रहतीं हैं। यहाँ पर क्या होगा ? कैसे होगा ? यह आने वाला समय ही बताएगा।