उस दिन इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स में (28 जुलाई 2016) नामवर जी का जन्मदिन मनाया गया था। तब उन्होंने अपने जीवन के 90 वर्ष पूरे किए थे। उन्हें देख कर और सुन कर अनुमान नहीं लगाया जा सकता था कि वे नब्बे की वयस में हैं। शानदार, भव्य व्यक्तित्व। न झुका हुआ न झूला हुआ। तना हुआ, सीधा, ठाड़ा, लंबा कद। नौजवानों को मात देती हुई अच्छी, पतली काया। चेहरे पर गरिमामय ज्ञान का तेज। मंच से घंटो बोलना कोई मुश्किल नहीं किंतु कम शब्दों में बहुत कुछ कह देने का हुनर उनके पास ही हो सकता था।
सबसे शानदार बात उनके व्यक्तित्व की जो थी, वह थी उनकी तटस्थता। मंच से बहुत से साहित्यकारों ने उनके बारे में अपने विचार रखे। कितना कुछ कहा जा रहा था। आदर से, श्रद्धा से, सम्मान एवं मधुरता से। किस्सों का अंत नहीं था। वे ध्यान से सब कुछ सुन रहे थे। उनके चेहरे की भाव -भंगिमाओं में रत्ती मात्र भी फर्क नहीं आता था। निर्विकार भाव से उनका अपनी प्रशंसा में कहे गए उद्बोधनों को सुनते रहना अभिभूत कर रहा था।
आज दूसरों को सुनने का धैर्य बहुत कम व्यक्तियों में है। सभी के पास अपने बारे में बोलने -बताने को बहुत कुछ होता है। अमूमन लोगों का धैर्य चूका हुआ है। जल्दी आवेश में आ जाने का गुणों में वृद्धि हुई है। किसी की जरा सी आलोचना कर दो, थोड़ा सा उनके हक़ में न बोलो फिर देखो रिश्ते किस तरह झट करवट बदलते हैं। अपने आप को सही साबित करने के लिए घंटो बहसें होने लगतीं हैं। ऐसे में अब कोई कैसे रहें अविचलित और कैसे रखा जाए धैर्य। बहरहाल -
इसलिए उस दिन नामवर जी का अति धीर -गंभीर, सहज, सरल रूप देख कर मन आनंद से भर गया था। आज वे नहीं होते हुए भी अपने पाठकों, अपने चाहने वालों की यादों और अपनी कृतियों में बने हुए हैं और हरदम बने रहेंगे।
आज उनकी नामवर जी को श्रद्धा पूर्वक मेरा नमन रहेगा। (नामवर जी का जन्मदिन 1 मई को और उनका ऑफिशल जन्मदिन कागज़ों के आधार पर 28 जुलाई को मनाया जाता है - काशीनाथ सिंह उनके अनुज भ्राता के कथनानुसार)