Thursday, July 14, 2016

नहीं तो चिरागों से लौ जा रही थी


कितना वक्त बीत गया 
बाहर की दुनिया में दौड़ते हुए 
भीतर की तरफ यात्रा करनी है 
अब कहीं तो पहुंचना है 
एक कश्मकश है, छटपटाहट है 
कुछ है भीतर, बहुत कुछ है 
जो आतुर है सिमटने को
कभी बिखरने को
जीवन का उत्साह है
जानने की उत्सुकता है 
अपनों का स्नेह है, प्रेमी का प्रेम है 
मिलन की खुशी है, बिछोह का दर्द है 
क्या है कुछ खबर नहीं 
कभी ढल जाएंगे ये अहसास
यादों की नमी लिए  
महकते शब्द बनकर 
कोरे कागज़ पर 
तब कह देंगे हम दुनिया वालों से 
समझो अपने भीतर के अहसासों को 
जो हर रूप में होते हैं 
सुंदर, खूबसूरत और बेमिसाल  
 

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