Thursday, January 14, 2016

नील गगन की छाँव में दिन रैन गले से मिलते हैं


​मेरा मन ​पंछी उड़ता रहता है 
नदियों पहाड़ों के ऊपर 
खुले विशाल आकाश में 
वहाँ मेरे साथ होता है 
एक सलोना सा चाँद 
ऊपर से दीखता है 
दुनिया का केवल बाहरी सुन्दर रूप 
भीतर की व्यथाएं, उलझनें कष्ट नहीं दीखते 
नहीं दिखतीं हैं रंजिशें और मन-मुटाव  
इसलिए मैं रहना चाहतीं हूँ 
वहीं उस भ्रम की दुनिया में 
हमेशा खोयी हुई 
इन नदियों, पहाड़ों की दुनिया में 
विस्तृत आसमान में 
सबसे दूर सबसे अलग 
अपनी खामोशियों और 
उस संदली चाँद के साथ 
जो बरसाता रहता है 
अपनी शीतलता 
चारों तरफ 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...