साहित्य अकादमी पुस्तकालय का हिन्दी विभाग बहुत ही समृद्ध है। यहाँ पर हिन्दी की अलग -अलग विधा की ढेरों पुस्तकें मिल जाएँगी। पिछले वर्ष से अब तक मैंने चुन -चुन कर, ओने -कोनों से ढूंढ कर मनोहर श्याम जोशी की जितनी भी पुस्तकें मुझे मिल सकीं, खूब पढ़ी। इस्शु कराते समय हर बार वहाँ बैठी इंचार्ज कह देतीं हैं।
"अब शायद ये आखिरी होगी? सारी तो पढ़ चुकीं हैं आप " - मैं भी यही मान कर चलती हूँ। परन्तु अगली बार फिर नज़र बेचैनी से उनकी पुस्तकें ढूंढने की काम में लग जाती है।
भारतीय सोप ओपेरा के जनक कहे जाने वाले मनोहर श्याम जोशी ने बुनियाद , हम लोग ' जैसे कई उम्दा धारावाहिक लिखे। टेलीविजन में धारावाहिकों के युग की शुरुआत कराने का श्रेय उन्ही को जाता है।
उन्होंने प्रेम लिखा है तो सिद्दत से भरा हुआ। तंज किया है तो ऐसा मलमल में लपेट कर की निशाने पर भी जा लगे और सहलाता हुआ सा भी लगे। दुःख दिखाया है तो ऐसा गोया दर्द की छटपटाहट जीने न दे। उनकी कलम से लगभग सभी पात्र जन्मे है और सभी भाव निकले हैं। स्नेह, प्रेम, आशीष, ईर्ष्या, मज़ाक, आँसू, दर्द, दोस्ती, भाईचारा, रिश्तेदारी आदि। और हर भाव अपने चरम पर जाकर प्रस्फुटित हुआ है।
जोशी जी बस कमाल लिखते हैं। गाँव - घर की याद दिला देते हैं। उन्होंने देहातों को और वहां के जन -जीवन को बेहद करीब से जाना है। चाहे वो महिला पात्र हो या पुरुष। उनकी मनोदशा का ऐसा सटीक वर्णन विरले ही पढ़ने , सुनने को मिलता है। ग्रामीण परिवेश के किस्से- कहानियाँ गढ़ते समय उनके लेखन में भाषा और सोच का जो ठेठ गँवारूपन परिलक्षित होता है उसकी कोई सानी नहीं।
मुझे उनको पढ़ कर इतना आनंद आने वाला हुआ कि बस बता नहीं सकती। एनीवे अपनी तकलीफें और अपनी खुशियां डिस्क्राइब करना इतना आसान थोड़े ही हुआ। खाली मुँह से बोलना और कलम से लिख देना, इतना ही जो क्या हुआ। अंदर क्या चलने वाला ठहरा वो खुद हमको ही मालूम हुआ। भुगतने वाला ही जानने वाला हुआ उसकी कश्मकश, जिसे कुमाउँनी भाषा में कहते हैं- उसका छटपटाट। कैसा इम्प्रॉपर जैसा हुआ ये।
जोशी ज्यु हो कैसे कर देने वाले हुए कहा आप ऐसे कमाल?
कमाल हुए आप, बेमिसाल हुए, 'क्याप' हुए आप.....