Saturday, August 17, 2013

हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान


वोयलेट…मैं उसे इसी नाम से बुलाती हूँ. हमेशा जल्दबाजी में, बदहवास सी. सब कुछ होते हुए भी पता नहीं दुनिया की कोई भी शह उसे खुश क्यों नहीं रख पाती?

रोज की ही तरह शाम को हड़बड़ाती हुई आती है और मुझे फ़रमान सुना देती है -"चल झटपट शावर ले, थ्री डी पार्टी में जाना है. मैंने वहां दोस्तों से कह दिया है आज तो तुझे लेकर ही आउंगी। चल...... तब तक मैं तेरे बेकार से वार्डरोब से तेरे लिए ड्रेस निकालती हूँ, शायद कुछ ढंग का मिल जाए ...... "

मैं उसके उत्त्साह, उसके घुटनों तक का ट्यूब ड्रेस और छ्ह इंच की हील की तरफ देखती हूँ. मुझे अक्सर उस पर प्यार आता है, सोचती हूँ मैं ऐसा क्या करूँ कि मेरी प्यारी वोयलेट के दिल को चैन और सुकून मिल जाए। उसे वार्डरोब खंगालते हुए देखती हुई मैं पास में रखी आराम कुर्सी पर झूलने लगती हूँ.....  

मुझे मालूम है मेरे वार्डरोब में जैसा वो ढूढ रही है वैसा उसे कुछ नहीं मिलने वाला। फिर वो मेरे ड्रेस सेंस पर लानत भेजेगी और नाराज़गी दिखाएगी। अपनी सोच के इस फोरकास्ट पर मुझे ज़ोर से हँसी आ जाती है ..... 

उसने खीजते हुए मुझे पलट कर देखा और बोली -"मैं कह रही हूँ शावर ले और महारानी झूलने में लगी है, एक तेरा ये थर्ड क्लास ड्रेस सेंस ..... "

"तू जानती है न मैं ऐसी पार्टी में नहीं जाती, क्या फायदा ऐसी पार्टी का वायलेट .… खाएंगे -पियेंगे....... कुछ पल की खुशी ..… उसके बाद?"

"अब तू अपनी थकी हुई बातों से मुझे और बोर मत कर हाँ।" वो आँखों की नमी मुझसे छिपाने की पूरी कोशिश करती है.

"वायलेट अब तू मुझे बता आज कैसे परेशान है?"

"देख पहले ही दिमाग बहुत खराब है, ऊपर से तू........ आई हेट यू ......"  वो गुस्से से दरवाजा पटक कर धडधडाती हुई नीचे उतर जाती है। जानती हूँ अपनी कार में जाकर बैठेगी और मेरा इन्तेजार करेगी। 

पूछती हूँ उससे -"फिर किसी ने कुछ कहा तुझसे? तेरे प्यारे मोहन ने?"..….वो मुझे मारने आती है........ हम दोनों ही खिलखिलाते हुए कार का दरवाजा खोल कर  ....... कुछ देर बिना चप्पल के लॉन में दौड़ जाते हैं ...... फिर थक कर बोली -"सच जान कितना मजा आया.....ये जिंदगी इतनी ही क्यूँ नहीं होती...... बालिश्त भर की....... ?"
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