पता नहीं बादल के ऊपर हूँ या बादल के नीचे
चाँद भी धुंधलके में छिपा कभी नज़र नहीं आया
सब कुछ खोया हुआ सा है
बर्फ के आवरण से ढका हुआ
आजकल अभिव्यक्तियाँ मौन हैं
संवेदनाएं बहुत गहराई में जाकर दब गई हैं
बर्फीली हवाओं से जमती हुई
दूर दूर तक फ़ैली हरियाली
अपने आँचल में खुशनुमा रंग समेटे
बहुत से ख्वाब दिखाती आकर्षित करती हैं
बारिश की हल्की फुहारों से भीगते हुए
दूर तक चलते रहना अब आदत बन गई है
फूलों की रंगबिरंगी छटाएं हवाओं को महकाती
अहसासों को झकझोरती तरंगित करती हैं
अकेलेपन का अपना रंग है
शांत सुन्दर मगर एक धागा उदासी का लिए हुवे
इसी आलम में सफर शुरू होकर ख़तम भी हो जाता है
सुनहरी धूप और धुंध से लपेट कर
बहुत से विचार और कुछ टुकड़ा यादें संजो रही हूँ
जो बाद में कभी दोहराने पर
उस दिन का मौसम सुहाना कर देती हैं
कुछ सुनहरे पल उस मौसम को समर्पित