Friday, July 1, 2011

इस काश शब्द से प्रेम होने लगा है

काश शब्द से भ्रम की स्थिती बनी रहती है
मालूम है ऐसे ज़िंदगी नहीं जी जाती
कुछ पल आनंद के
बस कैद हो पाते हैं
खुशी और दर्द के क्षणों में लगता
काश इसे अपनों से बाँट पाते
सुख की हर कल्पना भी
इसी काश पर टिक जाती है

काश ऐसा होता सोचते ही कल्पनाओं में
यथार्थ के रंग स्वतः ही भर जाते हैं
कई रंग आपस में मिलकर
सतरंगी आभा रचते हैं
प्रेम के सागर में डूबते उतरते
सोच के पंख उस जहाँ तक पहुँच जाते हैं
जहाँ पर इंतज़ार खड़ा होता है
अपने निश्छल प्रेम और
अटूट विश्वास के साथ

देवत्व की सुगंध बांटता
समूचा आकाश आनंदित रहता
तब होंठों पर खिले और
आँखों से छलके प्रेम को महसूसते
आवाज़ की गीली मिठास के साथ
खुशियों के गीत गाते
बाँहों में बाहें डाल अनंत तक चलते
काश वहाँ से वापस लौटने का
कोई रास्ता नही होता
काश ऐसा होता
काश ऐसा ही होता

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