Monday, May 16, 2011

मेरे आँगन उतरा इन्द्रधनुष


कल शाम खोई थी 
अपने ही ख्यालों में 
बारिश की रिमझिम में 
ठंडी हवा से सिहरते हुवे 
दूर तक भीगती वादियों को 
देख रही थी अपने ही आंगन से 
अचानक काले बरसते बादलों के आगोश से 
अलविदा कहने झांक उठा सूरज 
बादलों से आंखमिचोली करता 
मेरी मुस्कराहट की तरह 
तभी याद आया 
बारिश के प्रेम से भीग कर 
सारी धरा को अपनी सतरंगी बाँहों में
समेट लेता है सूरज
इसी उम्मीद पर पलट कर देखा 
मेरे आँगन में उतर आया था
वो इन्द्रधनुषी रूप लिए 
सम्मोहित होती 
समां गयी फिर मैं  भी 
सतरंगी सपने सजाती 
उसके प्यार भरे आलिंगन में 
प्रकृती तेरे  इस स्नेह की 
ऋणी रहूंगी में सदा 

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