कल शाम खोई थी
अपने ही ख्यालों में
बारिश की रिमझिम में
ठंडी हवा से सिहरते हुवे
दूर तक भीगती वादियों को
देख रही थी अपने ही आंगन से
अचानक काले बरसते बादलों के आगोश से
अलविदा कहने झांक उठा सूरज
बादलों से आंखमिचोली करता
मेरी मुस्कराहट की तरह
तभी याद आया
बारिश के प्रेम से भीग कर
सारी धरा को अपनी सतरंगी बाँहों में
समेट लेता है सूरज
इसी उम्मीद पर पलट कर देखा
मेरे आँगन में उतर आया था
वो इन्द्रधनुषी रूप लिए
सम्मोहित होती
समां गयी फिर मैं भी
सतरंगी सपने सजाती
उसके प्यार भरे आलिंगन में
प्रकृती तेरे इस स्नेह की
ऋणी रहूंगी में सदा