Friday, August 6, 2010

वो गुलमोहर

















क्रिमजन लहराते फूल
सहेजती आँचल में भरती
ये कैसा रिश्ता है मेरा
गुलमोहर से

प्रेममयी बयार से
यादों को महकाते हुए 
सुर्ख होते हॊठ
मुस्कुराते गीत गुनगुनाते

लहराती डालियाँ इसकी जब 
तन मन का ॠंगार करती
झरते फूलों की इतराहट लिए
महक उठती रूह मेरी

लाज़ से सिमटी
गुलनार होती 
इकसार हो जाती
इन्हीं फूलों के बीच 
मैं भी कहीं



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