Monday, December 7, 2009

रिश्ता खून का !


















अपना खून अपना होता है
अक्सर सुनती हूँ मैं
अपने परायों के बीच
अहम् की धूमिल रेखा
खींचते ये लोग
सड़क पर रिसते
खून को जांचेंगे पहले
अपने परायों के तराजू में
तब तक वो चंद साँसे
दम तोड़ चुकी होंगी
जब फर्क है रिश्तों में
बहू - बेटी में
बेटा - बेटी में
तो खून में भी होगा
जो मेरी समझ से परे है
दिलोदिमाग को झकझोरता
बेइमाना सा
अहम् की पूर्ति करता
ये दकियानूसी रिश्ता