Ria Sharma (Sehar)
Passion for reading, writing and traveling .
Thursday, September 6, 2018
ग़ालिब की गलियों में भटकते हुए (हम वहाँ हैं जहां से हमको भी, कुछ हमारी खबर नहीं आती)
ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल -ए -यार होता / अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता।
लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती 'ग़ालिब'
हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है
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