ए मुकद्दर तेरा जवाब नहीं
मेरी तक़दीर में न सही
हुजूम अपनों का
गैरों को अपना सकें
ऐसी भी कोई बात नहीं
हमें अपने आप से
फुर्सत नहीं मिलती
काम औरों के आ सकें
ऐसे भी हालात नहीं
या रब! कुछ करो ऐसा
मनावन का दौर चले
कुछ रूठों को मना ले
कुछ बिछड़ों को मिला दे
ज़िंदगी का फलसफा यही
चाँद हँसे तारे खिले
हवा चले नदियां बहें
तनहा हो अनजान हो
सफर यूँ ही चलता रहे..