भीड़ में खोये व्यक्ति की तरह
उलझे सहमे हैरान परेशान
बेखबर से ये शब्द कभी यूँ ही बिखर जाते हैं
सादे कागज के टुकड़े पर
मुझसे मांगते हैं मेरी बीती उम्र का हिसाब
रिश्तों को ना निभा सकने का क़र्ज़
थमा देती हूँ तब मैं उन्हें
पूनम के चाँद की सहलाती यादें
कभी स्याह रातों में हुए
नींद से झगड़ों के किस्से
कभी उम्मीद सी जाग उठती है
के ले जायेंगे ये मुझे
उस जगह जहाँ हर शब्द से
एक नई कहानी का जन्म होता है
बदल जाते हैं फिर वो
जन्म जन्मान्तर के रिश्तों में