Wednesday, December 10, 2025

इन हसीं वादियों में ( स्विटज़र लैंड की यात्रा का हमारा अगला पड़ाव - युन्ग्फ्राऊ, 3571 मीटर ( 11782 फीट )

 युन्ग्फ्राऊ (टॉप ऑफ़ यूरोप , स्विट्ज़रलैंड )


लुसर्न - शहर मध्य स्विट्ज़रलैंड का सबसे खूबसूरत शहर है। इस के पूर्व की ओर ऑस्ट्रिया, पश्चिम की ओर फ्रांस, उत्तर की ओर जर्मनी, और दक्षिण की ओर इटली है। यहाँ पर ज्यादा जर्मन भाषा का प्रयोग होता है और कुछ इतालवी भी बोली जाती है। कुछ दूरी तक हम सभी दिशाओं में चलेंगे ऐसा विचार था। अगले दिन लुसर्न से इंटरलाकन की तरफ बढ़े।

इन्टर्लाकन आरे नदी के साथ-साथ चलता ये खूबसूरत शहर अपने अनुपम सौन्दर्य के लिए जाना जाता है। यहाँ गर्मियों व सर्दियों में विभिन्न रोमांचक खेलों का आयोजन होता है। बॉलीवुड की शूटिंग के लिए यह बेहद प्रिय जगह है। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' , 'द हीरो' आदि कई फिल्मों में आप यहाँ की हरीतिमा और बर्फ से भरपूर धवल आल्प्स की पहाड़ियों के दृश्य देख चुके होंगे। हर भारतीय को गुरुर से सिर उठाने का अवसर देती कांस्य की बनी यश चोपड़ा जी की आदमकद मूर्ति शान से एक पार्क में खड़ी है। 


यहीं से शुरू होता है युन्ग्फ्राऊ और टिटलिस की पहाड़ियों के लिए रास्ता। जिसे कॉग व्हील ट्रेन ( खाँचों में फंस कर चलते पहिए ) और गंडोला, रोटेयर द्वारा तय करना होता है। 


ऊपर एक होटल, दो रेस्तरां, एक ऑब्सर्वेटरी , एक स्की स्कूल, एक सिनेमा हाल, एक रिसर्च सेण्टर व एक आइस पैलेस है। ट्रेन से बाहर निकल कर हमने रेस्तराँ में प्रवेश किया और एक मग गर्म चॉकलेट का पीकर बाहर बर्फ में निकल आए। अथाह बर्फ के बावजूद भी ठंड का नामोनिशान नहीं। पता नही ख़ुशी थी या जोश...आंग्ल लोग जहाँ कोट, टोपी, स्वेटर और मफलर से लेस होकर फोटो खींच रहे थे, वीडियो बना रहे थे और अपनी ठंड से लाल होती नाक को टिशू से सहला रहे थे वहीं हमारी मई- जून की गर्मी से झुलसे हुए भारतीय लोगों का दल (कुछ बुजुर्गों को छोड़कर) गर्म कपड़े हटा कर, बर्फ में खूब लोटपोट हो कर हँसते, खिलखिलाते खेल रहे थे। एक विदेशी ग्रुप लीडर ने बड़े ही आदर भाव से मेरे निकट आकर अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा। "भारतीय बहुत रंगीन मिजाज़ और खुशदिल होते हैं और ज़िंदगी को भरपूर जीते हैं.. " एक सहज, गर्वित मुस्कान मेरे चेहरे पर छा गई। 

हिम महल (आइस पैलेस) - यहीं पर बना है हतप्रभ करता आइस पैलेस, बर्फ का महल। मुख्य द्वार से ही बर्फ शुरू हो जाती है। फिसलने के डर से सभी, साइड में लगी रेलिंग को पकड़ कर चल रहे थे। कुछ देर बाद मालूम हुआ कोई जरुरत ही नहीं रेलिंग पकड़ने की। नीचे बिछी बर्फ के ऊपर वैक्स की पारदर्शी तह लगी थी। रपटने का कोई मतलब नहीं। चारों तरफ बर्फ की भव्य दुनिया। बर्फ से बनी आकृतियाँ जैसे मोर, पक्षी, टेडी बेयर, भालू, बच्चे आदि की सजीव सी लगती आकृतियाँ और गुफाएँ मन मोह रही थीं। अन्दर तापमान सेट होता है जिससे वहाँ पर बनी आकृतियाँ व आकार बने रहें। सफ़र की समाप्ति कर अति आनंदित हो फिर हम नीचे उतरने लगे। 

इतना सब कुछ देखकर लगा धन्य है मानव और उसकी कलात्मक सोच। एक बात तो ज़हन में जरुर आ रही थी कि वहाँ पर सिर्फ 3571  मीटर की ऊँचाई पर ये सब बना दिया गया है। हमारे भारत के 18,380 फीट की ऊंचाई पर स्थित लद्धाक में खर्दुंग ला विश्व में सबसे ऊंचाई पर बना मोटर मार्ग में प्रकृति ने हमको इससे भी सुन्दर नज़ारा दिया है। लेकिन वहाँ पर सिर्फ मुस्तैदी के साथ डटे हुए देश के वीर जांबाज सैनिकों के अलावा और कुछ क्यों नहीं है? कहाँ क्या कमी रह गई है...? यह कमी हम में है ? या हमारी व्यवस्था में..?