Monday, September 19, 2011

चाँद आहे भरेगा


मैं चाँद पर रहना चाहती हूँ
बिखरी हुई शीतलता में 
बहती हुई चांदनी में
जहाँ कोई बाहरी भीड़ नहीं 
कोई शोर नहीं
तब ठीक से सुनाई  देगा
भीतर शब्दों की भीड़ से जन्मा 
विचारों का शोर
जिसे सुनकर समझ पाउंगी
क्या चाहा है मैंने जीवन से 
या फिर जीवन ने मुझसे
चाहतें ही जीवन को गति देती हैं
चाहतों बनी रहो सजी रहो
यूँ ही रात की रानी सी महकती रहो
जिस से हर दिल में प्रेम 
फूल बन कर खिलता रहे
हर चेहरे पर एक अदद मुस्कान सजी रहे



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