मैं चाँद पर रहना चाहती हूँ
बिखरी हुई शीतलता में
बहती हुई चांदनी में
जहाँ कोई बाहरी भीड़ नहीं
कोई शोर नहीं
तब ठीक से सुनाई देगा
भीतर शब्दों की भीड़ से जन्मा
विचारों का शोर
जिसे सुनकर समझ पाउंगी
क्या चाहा है मैंने जीवन से
या फिर जीवन ने मुझसे
चाहतें ही जीवन को गति देती हैं
चाहतों बनी रहो सजी रहो
यूँ ही रात की रानी सी महकती रहो
जिस से हर दिल में प्रेम
फूल बन कर खिलता रहे
हर चेहरे पर एक अदद मुस्कान सजी रहे