Friday, September 2, 2011

महकते रिश्ते


भीड़ में खोये व्यक्ति की तरह
उलझे सहमे हैरान परेशान
बेखबर से ये शब्द कभी यूँ ही बिखर जाते हैं
सादे कागज के टुकड़े पर

मुझसे मांगते हैं मेरी बीती उम्र का हिसाब
रिश्तों को ना निभा सकने का क़र्ज़
थमा देती हूँ तब मैं उन्हें
पूनम के चाँद की सहलाती यादें

कभी स्याह रातों में हुए 
नींद से झगड़ों के किस्से
कभी उम्मीद सी जाग उठती है
के ले जायेंगे ये मुझे

उस जगह जहाँ हर शब्द से
एक नई कहानी का जन्म होता है
बदल जाते हैं फिर वो
जन्म जन्मान्तर के रिश्तों में

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