Thursday, May 7, 2020

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर को याद करते हुए  ( जन्मदिवस 7 मई )

हे अंतरयामी !
निर्मल करो, उज्ज्वल करो, सुंदर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो,
निर्भय करो हे!

(आतंरिक आनंद की तरफ)
 (  First Draft Manuscript of Gitanjali  )  
वे मात्र विलक्षण कवि नहीं थे। अपितु आजीवन, बहुमुखी और वैविध्यपूर्ण रचना -यात्रा करते हुए साधना रत रहे और 'गुरुदेव' कहलाए। 
​काबुलीवाला पढ़ी, पोस्टमास्टर पढ़ी। फिर गोरा पढ़ी, चोखेर बालि भी पढ़ ली। अंतहीन सिलसिला है। 
उम्र​ का लंबा सफ़र है, पढ़ते जाना है।
'गीतांजलि', बेशकीमती उपहार से प्राप्त आह्लादित पल। 
​नमन गुरुदेव ​!