Monday, May 4, 2020

मन्नू भंडारी की - एक कहानी यह भी पढ़ते हुए

" लेखन एक अनवरत यात्रा है - जिसका न कोई अंत है न मंज़िल "

आत्मकथ्य बेहद दुरूह कार्य है और हर मुश्किल कार्य रोमांचित करता है, आकर्षित करता है। इसीलिये शायद मेरे पुस्तक संसार को आत्मकथाओं ने समृद्ध कर रखा है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में किन अच्छे -बुरे अनुभवों से गुजरा, कहाँ पर टूटा, कहाँ बिखरा और कैसे अपने आप को समेटता हुआ, संघर्ष करता हुआ जीवन पथ पर अग्रसर हुआ मुझे बेहद रोमांचित करता है। 'महाभोज' और 'आपका बंटी' जैसे मशहूर उपन्यासों की रचयिता मन्नू भंडारी को पढ़ना हमेशा बहुत कुछ सिखाता है। 

'एक कहानी यह भी' मन्नू जी की आत्मकथात्मक जैसी पुस्तक है। जिसमें घर, पति, बच्ची, अध्यापन, समाज और साहित्यिक दुनिया आदि के खट्टे -मीठे, कड़वे अनुभव जैसे संवेगों से वे लगातार जूझतीं हैं। अपने तमाम तूफानी संघर्षों के बावजूद उन्होंने खूब लिखा। दिल से लिखा। अब भी लिख रहीं हैं। जब मन किसी छोटी -तुच्छ या विपरीत परिस्थिति से विचलित होने लगे, अवसादित होने लगे, लेखन से विरक्त होने लगे तब मन्नू जी से प्रेरणा ले लेनी चाहिए। 

व्यक्ति अच्छे पलों में तटस्थ रह सकें और विपरीत क्षणों में संजीदा यह भी आना चाहिए। हालातों से ज्यादा प्रभावित हुए बगैर उन के साथ सामंजस्य बैठाते हुए चलना कलाकारी है जो हर किसी में नहीं होती। यह कलाकारी है मन्नू भंडारी में। 

निपट एकांत और अकेलेपन में आत्मकथा पढ़ते हुए लगता है मानो आप उस व्यक्ति विशेष के हमराह हों, हमसफ़र। उसके हर पल के साथी। कभी अपनों के साथ, कभी अपने आप के साथ रहना बहुधा परमानंद का सुख देता है। वही सुख जिस की तलाश में कस्तूरी मृग भटकता रहता है। लेकिन जीवन में जिसकी महक उसके चारों तरफ फ़ैली रहती है।